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साध्वियों की संख्या न केवल अधिक है, अपितु उनका चरित्र-बल, उनकी ज्ञान-साधना और उपासकों पर उनका व्यापक प्रभाव है ।
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हमें आशा है कि इस कृति के माध्यम से पाठक वर्ग जैन एवं बौद्ध भिक्षुणी संघों के न केवल आचार-नियमों को समझेगा अपितु उनके महत्त्व का भी मूल्यांकन करेगा तथा दोनों परम्परा के आचार-नियमों को निकटता से जान सकेगा ।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में आदरणीय श्री नवलमल जी फिरोदिया द्वारा प्राप्त धनराशि का विनियोग किया गया है। आदरणीय फिरोदिया जी का संस्थान के विकास में रुचि है और उन्होंने जब यह ग्रन्थ निर्माण की प्रक्रिया में था, तभी १०,००० रुपये की एक राशि प्रकाशन कार्य हेतु दी थी । संस्थान इसके लिए उनका एवं उनके ट्रस्ट के न्यासी मण्डल का आभारी है ।
डॉ० अरुण प्रताप सिंह ने न केवल प्रस्तुत कृति का प्रणयन ही किया है, अपितु उसके प्रकाशन, प्रूफ - संशोधन आदि को भी रुचि लेकर पूरा किया है, अतएव संस्था उनके प्रति आभारी है । हम महावीर प्रेस और उसके संचालक श्री बाबूलाल जी फागुल्ल एवं श्री राजकुमार जी जैन के भी आभारी हैं जिन्होंने प्रस्तुत कृति के सुन्दर एवं कलापूर्ण मुद्रण कार्य को पूर्ण किया है ।
भूपेन्द्र नाथ जैन मन्त्री
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डॉ० सागरमल जैन निदेशक
सोहनलाल जैन धर्मं प्रसारक समिति पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान फरीदाबाद वाराणसी - ५
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