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आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ४७ बृहत्कल्पभाष्य तथा ओघनियुक्ति भिक्षुणी के लिए ग्यारह वस्त्रों का विधान करते हैं जिनमें छः शरीर के निचले हिस्से को ढंकने के लिए तथा पाँच शरीर के ऊपरी हिस्से को ढंकने के लिए पहने जाते थे। शरीर के निचले भाग वाले वस्त्र
१. उग्गहणन्तग' : यह वस्त्र भिक्षुणी के गुप्तांग को ढंकने के लिए होता था तथा इसका आकार नाव की तरह बीच में चौड़ा तथा दोनों किनारों पर पतला होता था।
२. उग्गहपट्टग : यह प्रथम वस्त्र उग्गहणन्तग को ढंकने के लिए पहना जाता था। इसकी तुलना कमर में पहनी जाने वाली मल्लों (पहलवानों) की लंगोटी से की गयी है (कडिबंधो मल्लकच्छा वा)।
३ अड्रोरुग' : यह भी कमर पर पहना जाता था जो उक्त दोनों वस्त्रों को ढंक लेता था।
४. चलणी : यह बिना सिली हुई रहती थी तथा जानु (घुटनों) तक आती थी (जाणुपमाणा)।
५. अन्तोनियंसणी : यह वस्त्र कमर से लेकर आधी जाँघ तक रहता था (अद्धजंघाओ)।
६. बहिनियसणी' : यह वस्त्र कमर से लेकर एड़ी तक ढंकता था (कडी य दोरेण पडिबद्धा)। शरीर के ऊपरी भाग वाले वस्त्र
१. कंचुक : यह स्तन को ढंकता था तथा बिना सिला रहता था (असीवियो)। भिक्षुणी के शरीर के अनुसार यह विभिन्न नापों का होता था।
२. ओकच्छिय' : यह कंचुक जैसा ही रहता था तथा दाहिने कन्धे की तरफ बाँधा जाता था। १. ओघनियुक्ति, ३१३. २. वही, ३१४. ३. वही, ३१५. ४. वही, ३१५. ५. वही, ३१६. ६. वही, ३१६. ७. वही, ३१७. ८. वही, ३१७.
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