SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ४५ समर्थन अपरिग्रह के सम्बन्ध में किया गया था । अर्थात् भिक्षु-भिक्षुणियों को यह शिक्षा दी गयी थी कि वे अपने मन में वस्त्र के सम्बन्ध में किसी प्रकार की लिप्सा की भावना न आने दें। वस्त्र के सम्बन्ध में भिक्ष या भिक्षुणी को लोलुप नहीं होना चाहिए। यही इसकी मूल भावना थी परन्तु बाद में इस पर रूढ़िवादिता का जामा पहना दिया गया। __ जहाँ तक साध्वियों के अचेलकत्व का प्रश्न है-इसका कभी भी समर्थन नहीं किया गया।' उत्तराध्ययन नियुक्ति में आचार्य शिवभूति की बहन भिक्षुणी उत्तरा का उल्लेख मिलता है जिसने अपने भिक्षु भाई की तरह अचेलक व्रत का पालन करना चाहा परन्तु सामाजिक अपवाद के डर से वह इसका पालन न कर सकी और वस्त्र पहनने को विवश हुई। श्वेताम्बर परम्परा के आगम ग्रंथ आचारांग से लेकर बाद के परवर्ती ग्रन्थों तक में वस्त्र सम्बन्धी अनेक नियमों का उल्लेख मिलता है । यद्यपि दिगम्बर परम्परा में ऐसे विस्तृत नियमों का अभाव है परन्तु भिक्षुणी के सम्बन्ध में दिगम्बर सम्प्रदाय भी वस्त्र धारण करने का विधान करता है। उपयुक्त वस्त्र : जैन भिक्षुणी निम्न पाँच प्रकार के पदार्थों से निर्मित वस्त्र को धारण कर सकती थी। (१) जांगमिक-भेड़ आदि के ऊन से निर्मित वस्त्र (२) भांगिक-अलसी आदि के छाल से निर्मित वस्त्र (३) सानक-सन (जूट) से निर्मित वस्त्र (४) पोतक-कपास से निर्मित वस्त्र । (५) तिरीटपट्ट-तिरीट (तिमिर) वृक्ष की छाल से निर्मित वस्त्र चमडे से निर्मित वस्त्र को धारण करना चाहे वह रोमयुक्त हो या रोमहीन, भिक्ष-भिक्षुणियों दोनों के लिए निषिद्ध था। यद्यपि कुछ विशेष परिस्थितियों में भिक्षु को इसको धारण करने की अनुमति दी गयी है। परन्तु भिक्षुणियों को चमड़े का वस्त्र धारण करना सर्वथा वर्जित था । १. नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होतए-बृहत्कल्प सूत्र, ५/१९. २. उत्तराध्ययन नियुक्ति, पृ० १८१. ३. बृहत्कल्प सूत्र, २/२९, ४. वही ३/३. ५. वही, ३/४. ६. आचारांग, २/५/१/५-६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy