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________________ आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ४३ भी हो, वह उसे लेने से अस्वीकार नहीं कर सकती थी। उसे यह शिक्षा दी गयी थी कि वह आहार के प्रति समभाव रखे। भिक्षा ग्रहण करते समय उसे अपने पात्र की तरफ ही देखने को कहा गया था तथा साथ ही यह भी निर्देश दिया गया था कि गहीत पदार्थ भिक्षा-पात्र के ऊपर उठा हुआ न रहे-बल्कि भिक्षा-पात्र के अन्दर ही रहे ।२ गृहीत पदार्थ यदि आवश्यकता से अधिक प्राप्त हो गया हो तो उसे दूसरी भिक्षुणियों के साथ मिलकर खाने का विधान था । भोजन के लिए बैठने का नियम भिक्षुणी यदि समूह के साथ भोजन करती थी तो पंक्ति में आने के क्रम के अनुसार अपना स्थान ग्रहण करती थी। इसका उल्लेख फाहियान ने खोतान के भिक्षओं के सन्दर्भ में किया है, जहाँ वे भोजन के लिए एक भोजनशाला (घण्टा) में उपस्थित होते थे। भोजन कर लेने के उपरान्त भिक्षुणियाँ एक साथ आपस में बातें करने लगती थीं जिससे कोलाहल सा मच जाता था। इसके निवारण के लिए भी बौद्ध-संघ में नियम बने थे जिसके अनुसार आठ भिक्षणियों को अपनी ज्येष्ठता के अनुसार उठना था तथा शेष भिक्षुणियों को आने के क्रम के अनुसार । परन्तु ये नियम सर्वदा नहीं लाग होते थे और आवश्यकतानुसार ज्येष्ठता का ध्यान रखे बिना भी उठा जा सकता था।" तलना : दोनों संघों में भिक्षणियों का भोजन सादा एवं सात्विक होता था। भोजन की शुद्धता का पर्याप्त ध्यान रखा जाता था । साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता था कि भिक्षु-भिक्षुणियों के भोजन का भार समाज के किसी एक व्यक्ति अथवा एक वर्ग विशेष पर न पड़े। अतः भिक्षु-भिक्षुणियों को यह निर्देश दिया गया था कि वे धनी-निर्धन, ऊँचनीच, वर्ण-जाति आदि का भेद किये बिना सबके यहाँ से भोजन प्राप्त करें। गृहस्थ द्वारा प्रदत्त भोजन सुस्वादु हो या स्वादरहित-दोनों संघों के भिक्षु-भिक्षुणियों को सत्कारपूर्वक ग्रहण करने का निर्देश दिया गया १. पातिमोक्ख, भिक्खुनी सेखिय, २७. २. वही, २८-३०. ३. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय, ११९. ४. Buddhist Records of the Western World, Vol. I. p. 26 ५. चुल्लवग्ग, पृ० ३९५; भिक्षुणोविनय, $ २९२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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