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४२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
पालन करना पड़ता था। भिक्षा-पात्र में एक तरफ से ही भोजन ग्रहण करने का विधान था ।' ___ उसे यह निर्देश दिया गया था कि पिंड (ग्रास) को सावधानीपूर्वक मुंह में डाले तथा लालचवश अधिक पाने के लिए दाल या भाजी को चावल आदि से न ढंके । भोजन का ग्रास न तो अधिक बड़ा होना चाहिए और न अधिक छोटा । उसका आकार गोल होना चाहिए।
उसे यह शिक्षा दो गयी थी कि ग्रास को मुख तक लाये बिना मुंह न खोले तथा भोजन करते समय हाथ की पूरी उँगलियों को मुंह में न डाले-यह असभ्यता का द्योतक माना जाता था। प्रत्येक भिक्षुणी को यह भी निर्देश दिया गया था कि ग्रास को उछाल-उछाल कर न खाये । इसी प्रकार वस्तु को काट-काटकर खाना निषिद्ध था। भिक्षुणी को भोजन ग्रहण करते समय न तो गाल फुलाना चाहिए और न हाथ झाड़ना चाहिए । खाते समय मुँह से आवाज भी नहीं उत्पन्न करनी चाहिए। भिक्षापात्र को हाथ या ओठ से चाटना भी अनुचित माना गया था। इसी प्रकार जूठन लगे हाथ से पानी के बर्तन को पकड़ना तथा जूठन लगे पात्र को घर में ही छोड़ देना अनुचित माना गया था-इन नियमों का उल्लंघन करने पर संघ के नियमानुसार दुक्कट के दण्ड का भागी बनना पड़ता था ।
चौथी शताब्दी में आने वाले चीनी यात्री फाहियान ने खोतान में कुछ बौद्ध भिक्षुओं को एक साथ भोजन करते हुए देखा था । उसने लिखा है कि भोजन ग्रहण करते समय वे बिल्कुल शान्त रहते थे तथा आवश्यकतानुसार भोजन के लिए हाथ से इशारा करते थे, मुंह से नहीं माँगते थे। बौद्ध संघ में भोज का प्रचलन बुद्ध के समय से ही प्रारम्भ हो गया था । निमन्त्रण पाकर संघ के सदस्य (भिक्षु-भिक्षुणी) उपासक के यहाँ एकत्रित होकर भोजन करते थे ।
गृहस्थ द्वारा प्रदत्त भोजन सुस्वादु हो अथवा स्वाद-रहित, भिक्षा का सम्मान करते हुए ग्रहण करने का निर्देश दिया गया था । भिक्षा कैसी
१. पातिमोक्ख, भिक्खुनो सेखिय, ३२-३३. २. वही, ३५-४०. ३. वही, ४१-५६. 7. Buddhist Records of the Western World, Vol. I. P. 27.
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