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________________ ४० : जेन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ थे-उनके सम्बन्ध में भिक्षुणियों को भिक्षुओं के समान ही आचरण करने का निर्देश स्वयं बुद्ध ने दिया था ।' बौद्ध भिक्षुणियों का भोजन सादा तथा सात्विक रहता था। आहार सम्बन्धी अनेक नियम थे जिनका पालन करना उनका प्रथम कर्तव्य था। भोजन में लहसुन तथा प्याज का प्रयोग निषिद्ध था ।२ माँगकर या भूनकर भी वह कच्चे अनाज को ग्रहण नहीं कर सकती थी। इसी प्रकार सुरा-पान (सुरामेरय) भिक्षुणियों के लिए सर्वथा वर्जित था। स्वस्थ भिक्षुणी के लिए घी, दही, तेल, मधु, दूध, मक्खन तथा मांस का ग्रहण करना भी वजित था । इन पदार्थों को ग्रहण करने पर प्रतिदेशना का दण्ड लगता था। यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि बौद्ध संघ में मांस खाना कहाँ तक उचित था । विनय पिटक में ऋषिपत्तन (सारनाथ) की रहने वाली प्रसिद्ध उपासिका सुप्रिया के द्वारा अपना मांस देने का उल्लेख है। प्रसंग के अनुसार एक बौद्ध भिक्षु ने जुलाब (विरेचन) ले लिया था, उसकी वेदना को शान्त करने के लिए अनुदिष्ट मांस न मिलने पर सुप्रिया ने अपने जाँघ के मांस को काटकर दिया था। यह घटना जब बुद्ध को ज्ञात हुई तो उन्होंने उस बौद्ध भिक्षु को बहुत फटकारा तथा दुभिक्ष आदि के अवसर पर भी मनुष्य, हाथी, कुत्ते, सिंह, बाघ, चीते आदि का मांस खाना निषिद्ध ठहराया। इस प्रकार का मांस खाने वाला थुल्लच्चय का गम्भीर दोषी माना जाता था। इस कथा से ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध संघ में भिक्षु या भिक्षुणी द्वारा मांस खाना सर्वथा निषिद्ध नहीं था। रोग के निवारण हेतु मांस का औषध के रूप में प्रयोग किया जा सकता था। बौद्ध भिक्षणियों को विकाल (मध्याह्न के बाद) में भोजन करना निषिद्ध था। ऐसा करने पर उन्हें पाचित्तिय के दण्ड का भागी बनना (मध्याह्न के बाद में भोजन करना १. चुल्लवग्ग, पृ० ३७९. २. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, १. ३. वही, ७. ४. वही, १३२. ५. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाटिदेसनीय, १-८. ६. महावग्ग, पृ० २३२. ७. वही, पृ० २३३-२३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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