SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ३९ आहार के लिए भिक्षुणियों को अकेले जाना निषिद्ध था। उन्हें ३, ५ या ७ की संख्या में जाने का निर्देश दिया गया था। इसके अतिरिक्त भिक्षा-वृत्ति या यात्रा आदि के समय एक थेरी (स्थविरा) भी सर्वदा साथ रहती थी। भिक्षुणियों को अपने लिए भोजन बनाना या किसी कार्य के लिए आग जलाना सर्वथा निषिद्ध था। भिक्षु-भिक्षणियों को परस्पर एक दूसरे को भोजन देना निषिद्ध था। भिक्षुणियों को दिन में एक बार भोजन ग्रहण करने का निर्देश था । सूर्योदय के पश्चात् तथा सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर लेने का विधान था । ___ भिक्षुणियों को दोष-रहित आहार ही ग्रहण करने का निर्देश दिया गया था । श्वेताम्बर ग्रन्थों में उल्लिखित उद्गम, उत्पादन, एषणा तथा परिभोग के आहार सम्बन्धी दोष दिगम्बर ग्रंथ मूलाचार में भी प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त शुद्ध आहार प्राप्त होने पर भी कुछ परिस्थितियों में भोजन ग्रहण करने से निषेध किया गया था-यथा-भिक्षुणी को यदि कौवा छु ले, वह वमन कर दे, वह अपना या दूसरे का खून देख ले, जीव-हिंसा हो जाय, कोई उस पर प्रहार कर दे, गाँव में आग लग जाय आदि । ___ जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों में आहार सन्बन्धी नियमों में प्रायः समानता दीख पड़ती है। दोनों में मुख्य अन्तर यह था कि श्वेताम्बर परम्परा में साध्वियाँ पात्र में भिक्षा लाकर अपने ठहरने के स्थान पर उसका भोग करती थी जबकि दिगम्बर परम्परा में भिक्षुणियां गृहस्थ के घर पर स्वहस्त में भिक्षा ग्रहण कर वहीं उसका उपभोग कर लेती थीं। बौद्ध भिक्षुणियों के आहार सम्बन्धी नियम जैन संघ की तरह बौद्ध संघ में भी भिक्षु-भिक्षुणियों के नियमों में कोई अधिक असमानता नहीं थी । भिक्षु-भिक्षुणियों के जो नियम समान १. मूलाचार, ४/१९४. २. वही, ४/१९४. ३. वही, ४/१९३. ४. वही, ६/४९. ५. वही, ६/७३. ६. वही, ६/३-५७, ६/६३. ७. वही, ६/७६-८२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy