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३८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
ये आहार को न तो वे स्वयं खॉय और न तो किसी दूसरे को दें अपितु किसी एकान्त स्थान में उस आहार का परित्याग कर दें । '
इसी प्रकार भिक्षुणी ने यदि शंकाओं से युक्त भोजन स्वीकार कर लिया हो तो उसे न स्वयं ग्रहण करना चाहिए और न किसी दूसरे को देना चाहिए। हाँ, यदि कोई अनुपस्थापित शिष्या (अणुवट्टावियए) हो तो उसे वह भोजन दे सकती थी । नवदीक्षिता साध्वी का जब तक यावज्जीवन के लिए महाव्रतारोहण नहीं होता, तब तक वह अनुपस्थापित शिष्या कहलाती थी ।
भिक्षा के लिए अपने गच्छ से बहुत दूर जाने का विधान नहीं था । उत्तराध्ययन' के अनुसार भिक्षुणी भिक्षा के लिए आधे योजन की दूरी तक जा सकती थी । बृहत्कल्प सूत्र के अनुसार वह एक कोश सहित एक योजन का अवग्रह करके रह सकती थी अर्थात् २३ कोग़ जाना और २३ कोश लौटना - इस प्रकार ५ कोश जाने-आने का नियम था । दिगम्बर जैन भिक्षुणियों के आहार सम्बन्धी नियम
दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों से भिक्षुणियों के बारे में अत्यन्त अल्प सूचना प्राप्त होती है । श्वेताम्बर ग्रन्थों में “भिक्खु वा भिक्खुणी वा" अथवा “निग्गन्थ वा निग्गन्थी वा" कहकर भिक्षु भिक्षुणियों के मध्य जिस प्रकार नियमों के प्रसंग में प्रायः समानता प्रदर्शित की गई है उसका भी यहाँ अभाव है । परन्तु मूलाचार के एक श्लोक से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जो नियम भिक्षुओं के लिए हैं, वे यथायोग्य भिक्षुणियों के लिए भी प्रयुक्त हो सकते हैं ।" इसके अतिरिक्त, भिक्षुणियों के लिए अलग से कुछ नियम भी ग्रन्थों में यत्र-तत्र प्राप्त हो जाते हैं, जिनके आधार पर उनके आहार सम्बन्धी नियमों की एक संक्षिप्त रूप-रेखा प्रस्तुत की सकती है ।
५/१४.
१. बृहत्कल्प सूत्र, २ . वही, ४ / १८. ३. उत्तराध्ययन, २६/३६.
४. बृहत्कल्प सूत्र, ३/३४.
५. " एसो अज्जांनविय समाचारो जहाक्खिओ पुण्यं
सव्वह्नि अहोरते विभासिदव्वो जधाजोगं ।
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—मूलाचार, ४/१८७.
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