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________________ आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ३७ आहार का उद्देश्य सुस्वादु भोजन करना अथवा शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाये रखना नहीं था अपितु केवल जीवन-निर्वाह करना था, अर्थात् रूखा-सूखा खाकर शरीर को केवल इस योग्य बनाये रखना था ताकि सरलतापूर्वक धर्म-साधना की जा सके । उत्तराध्ययन में भोजन ग्रहण करने के छः हेतुओं का उल्लेख है। (१) वेयण-क्षुधा-वेदना की शान्ति के लिए (२) वेयावच्चे-वेयावत्य (सेवा) के लिए (३) इरियट्ठाये-ईर्यासमिति के पालन के लिए (४) संजमट्टाए-संयम पालन के लिए (५) पाणवत्तियाए-प्राणों की रक्षा के लिए (६) धम्मचिन्ताए-धर्मचिन्तन के लिए ___ स्पष्ट है कि जैन भिक्षु-भिक्षुणियों से यह आशा की गयी थी कि वे शरीर के प्रति अनावश्यक मोह को त्यागें तथा अन्तःकरण की उन शक्तियों का विकास करें जिससे निर्वाण की प्राप्ति हो सके। किसी भी दशा में भिक्षुणी को मदिरापान की आज्ञा नहीं थी। इसी सन्दर्भ में उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि स्वादिष्ट भोजन की लालच में वे निर्धन गृहस्थों के घरों को छोड़कर धनी गृहस्थों के घरों में न जायें। उत्तराध्ययन के अनुसार भिषणा के लिए जाने का श्रेष्ठ समय दिन का तृतीय प्रहर है। सूर्योदय से पूर्व तथा सूर्यास्त के बाद आहार लेना सर्वथा वजित था। इसी प्रकार रात्रि में भोजन करने का सर्वथा निषेध किया गया है। रात्रि में सूक्ष्म प्राणी दिखायी नहीं देते हैं। अतः इसमें हिंसा की प्रबल सम्भावना बनी रहती है। इससे स्पष्ट है कि जैन साधु या साध्वी को दिन में केवल एक बार भोजन करने का विधान था । प्रथम प्रहर में लाये हुये भोजन को अन्तिम प्रहर तक रखना निषिद्ध था। यह निर्देश दिया गया था कि ऐसे लाये १. उत्तराध्ययन, २६/३३. २. दशवैकालिक, ५/२/३६. ३. वही, ५/२/२५. ४. उत्तराध्ययन, ३०/२१; २६/३२. ५. दशवैकालिक, ८/२८. ६. वही, ६/२४-२६; बृहत्कल्प सूत्र, १/४४, ५/४७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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