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________________ २८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ सम्यक् पालन कराना पड़ता था। इस नियम की अवहेलना करने पर उसे पाचित्तिय का दण्ड लगता था।' अपनी शिक्षमाणा के साथ प्रवर्तिनी को कम से कम ५-६ योजन तक यात्रा करने का विधान था ।२ सम्भवतः इससे यह विश्वास किया गया था कि शिक्षमाणा इस भ्रमण से अपनी भविष्य की परिस्थितियों के प्रति जागरूक हो जायेगी। प्रारम्भ में भिक्षु ही भिक्षुणी को उपसम्पदा प्रदान कर सकता था जिसकी अनुमति स्वयं बुद्ध ने दी थी । परन्तु बाद में इस नियम में परिवर्तन आया । परिवर्तित नियम के अनुसार शिक्षमाणा को सर्वप्रथम भिक्षुणी-संघ में उपसम्पदा प्रदान की जाती थी, तदनन्तर भिक्षु-संघ में । महावंस में हम देखते हैं कि थेर महेन्द्र ने सिंहल राजा की रानियों को उपसम्पदा देना अस्वीकार कर दिया था तथा अपनी बहन थेरी संघमित्रा को भारत से बुलाने की राय दी थी। उपसम्पदा को अनुमति देने वाले संघ में उसके सदस्यों की संख्या कितनी होती थी, भिक्षुणी-संघ के सम्बन्ध में इसका उल्लेख तो नहीं मिलता परन्तु भिक्षु की उपसम्पदा के सम्बन्ध में संघ की संख्या का उल्लेख मिलता है। मध्यम देश (उत्तर-प्रदेश, बिहार आदि का अधिकांश भाग) में संघ के सदस्यों की संख्या कम से कम १० होनी चाहिए । गणपूति में योग्य भिक्षु-भिक्षुणियों की गणना होती थी। इसके बाहर के भूभाग अर्थात् दक्षिण तथा सीमान्त आदि प्रदेशों में संघ की संख्या कम से कम ५ हो सकती थी। सम्भवतः भिक्षणिओं के सन्दर्भ में भी इसी नियम का पालन किया जाता रहा होगा। बौद्ध संघ में प्रवेश के उपरान्त भिक्षुणी को समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए छाया को मापने की प्रक्रिया का ज्ञान कराया जाता था। छाया-ज्ञानके द्वारा उसे ऋतु तथा दिन के सम्यक विभाजन का बोध कराया जाता था ताकि भोजन, भ्रमण तथा अध्ययन के सम्बन्ध में उसे कोई कठिनाई न हो। इसके उपरान्त उसे तीन निश्रय बतलाए जाते थे जो निम्न थे। (१) उसे अब जीवन भर भिक्षा माँगकर भोजन करना पड़ेगा। (२) जीर्ण वस्त्र (पाँसुकुल) धारणा करना पड़ेगा। १. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ६३, ६६, ६७, ७२. २. वही, ७०. ३. चुल्लवग्ग, पृ. ३७७. ४. महावंस १५/१९-२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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