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२६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ भिक्षुणी पाम्बब्बे के केश-लुञ्चन का उल्लेख मिलता है।
जैन भिक्षुणियों को इस प्रकार की दीक्षा-विधि से दो तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आते हैं ।२ प्रथम तो यह कि स्त्रियों को चाहे वे अविवाहित हों या विवाहित-अपने संरक्षक से अनुमति लेनी अनिवार्य थी। दूसरे-उन्हें केशलुञ्चन की प्रथा का पालन करना पड़ता था । ऐसा करना प्रत्येक के लिए अनिवार्य था, चाहे वह किसी राजघराने की राजकुमारी हो अथवा कोई साधारण नारी ।
बौद्ध भिक्षुणी-संघ में दीक्षा-विधि : बौद्ध भिक्षुणी-संघ में भी स्त्रियों के प्रवजित होने के विस्तृत नियम थे। भिक्षुणी-संघ में उपसम्पदा के पश्चात् ही कोई नारी भिक्षुणी बन सकती थी। उपसम्पदा के पूर्व उसे प्रव्रज्या प्रदान की जाती थी। इस समय वह श्रामणेरी कहलाती थी और उसे दश शिक्षापदों का सम्यकरूपेण पालन करना होता था । इसके उपरान्त उसे शिक्षमाणा के रूप में कम से कम दो वर्ष तक षड्शिक्षापदों के पालन का व्रत लेना पड़ता था । यह भिक्षुणी बनने के पहले की तैयारी होती थी।
भिक्षुणी-संघ की स्थापना के समय प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा में इस ' प्रकार का विभाजन नहीं था। ये दोनों एक साथ ही सम्पन्न हो जाती थीं। महाप्रजापति गौतमी तथा उसके साथ की शाक्य नारियों की प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा अष्टगुरुधर्मों को स्वीकार कर लेने पर ही हो गई थी। सम्भवतः संघ में नारियों की बढ़ती हयी संख्या को देखकर तथा अयोग्य नारियों के प्रवेश को रोकने के लिए इस नियम में परिवर्तन करके प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा में भेद कर दिया गया होगा।
सर्वप्रथम उपसम्पदा चाहने वाली शिक्षमाणा के बारे में उपाध्याया (जो शिक्षमाणा को दो वर्ष शिक्षा प्रदान करती थी) भिक्षणी-संघ को सूचित करती थी कि इस नाम वाली शिक्षमाणा को उसने (उपाध्याया ने) शिक्षित किया है । तदुपरान्त वह शिक्षमाणा के द्वारा भिक्षुणियों के चरणों में वन्दना करवाकर उपसम्पदा के लिए याचना करवाती थी। शिक्षमाणा तीन बार संघ में प्रवेश करने के लिए प्रार्थना करती थी। इसके उपरान्त भिक्षुणी-संघ की कोई विदुषी भिक्षुणी भिक्षुणी-संघ को १. जैन शिलालेख संग्रह, भाग द्वितीय, पृ० १९७. ... 2. History of Jaina Monachism, p. 466. ३. द्रष्टव्य-इसी ग्रन्थ का षष्ठ अध्याय.
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