________________
३४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
I
है । व्यवहार सूत्र' के अनुसार आठ वर्ष से कम आयु वाले क्षुल्लकक्षुल्लिका उपस्थापना के लिए अयोग्य माने जाते थे । उन्हें मण्डली में भोजन ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी । नियमानुसार बिना उपस्थापना के संघ में उनकी ज्येष्ठता का निर्धारण नहीं होता था । इससे स्पष्ट है कि आठ वर्ष से कम आयु वाले स्त्री-पुरुष को दीक्षा देने का निषेध था । यदि वे दीक्षा ग्रहण भी कर लेते थे तो आठ वर्ष पूरा किये बिना उन्हें यथोचित अधिकार प्रदान नहीं किया जाता था । क्षुल्लिका के रूप में कुछ समय तक नियमों को सीखने के उपरान्त ही वह भिक्षुणी बनती थी ।
बौद्ध भिक्षुणी संघ में प्रवेश के समय आयु - भिक्खुनी पाचित्तिय नियम के अनुसार १२ वर्ष से कम की विवाहित (गिहीगता ) शिक्षमाणा तथा २० वर्ष से कम की अविवाहित ( कुमारीभूता) शिक्षमाणा को उपसम्पदा देना निषिद्ध था अर्थात् इससे कम उम्र में वह भिक्षुणी नहीं बन सकती थी । प्रव्रज्या के पश्चात श्रामणेरी के रूप में १० शिक्षापदों का पालन करने के पश्चात् ही वह शिक्षमाणा बन सकती थी । शिक्षमाणा के रूप में उसे दो वर्ष तक षड्नियमों का पालन करना पड़ता था । परन्तु वह श्रामणेरी के रूप में कितने वर्ष तक रहती थी - यह ज्ञात नहीं है । अतः इससे यह पता तो नहीं चलता कि प्रव्रज्या अर्थात् संघ - प्रवेश के समय नारी की निम्नतम आयु कितनी होती थी परन्तु इतना स्पष्ट है कि उपसम्पदा के समय विवाहित शिक्षमाणा की उम्र कम से कम १२ वर्ष तथा अविवाहित शिक्षमाणा की उम्र कम से कम २० वर्ष रहनी आवश्यक थी । यहाँ विवाहित भिक्षुणियों से तात्पर्य उन स्त्रियों से प्रतीत होता है जो विवाह के पश्चात् विधवा हो जाती थीं और उनके लिए संघ प्रवेश के अतिरिक्त सम्मानित जीवन व्यतीत करने का और कोई विकल्प नहीं रहता था ।
उपर्युक्त नियम के कुछ अपवाद भी पाये जाते हैं । महावंस के अनुसार संघमित्रा को १८ वें वर्ष में प्रव्रज्या तथा उपसम्पदा दोनों प्राप्त हो गई थी । इससे स्पष्ट होता है कि देश - काल के अनुसार नियमों में
थोड़े बहुत परिवर्तन होते रहते थे
।
१. व्यवहार सूत्र, १० / २०. २. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ७१. ३. वही, ७४.
४. महावंस, ५ / २०५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org