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________________ ___ जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी-संघ की स्थापना : २३ धक्का पहुंच सकता था तथा साधना में भी अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो सकती थीं। ऋणग्रस्त नारी के ऊपर दाता का पूरा अधिकार रहता था, अतः ऋण के भार से मुक्त हुए बिना यदि वह संघ में प्रवेश लेती थी तो ऋणदाता संघ से उसको वापस लेने के लिए कलह कर सकता था। रोगी भिक्षुणी प्रारम्भ से ही संघ के ऊपर भार हो जाती थी अतः इस स्थिति से यथासम्भव बचने का प्रयत्न किया जाता था। इसी प्रकार राजकीय सेवा में लगी नारो को प्रवेश नहीं दिया जाता था क्योंकि इससे संघ में राजकीय हस्तक्षेप की सम्भावना हो सकती थी। चूँकि संघ राजकीय नियन्त्रण से मुक्त रहते थे, अतः यह विशेष सावधानी रखी जाती थी कि संघ तथा राज्य के सम्बन्ध कटु न हो सके। इसी प्रकार प्रवेश के समय नारी को अपने संरक्षक से अनुमति लेनी अनिवार्य थी अन्यथा बाद में यह घटना संघ और अभिभावकों के मध्य कलह का कारण बनती थी। इस प्रसंग में सुदिन्निका' नामक बौद्ध भिक्षुणी का उदाहरण द्रष्टव्य है। पति की मृत्यु के बाद सुदिन्निका ने अपने संरक्षक (पति के अनुज) से अनुमति लिए बिना ही भिक्षुणी-संघ में प्रवेश लिया था। बाद में उसके देवर ने संघ में जाकर सुदिन्निका की प्रवर्तिनी से कलह किया था। संघ इन सभी कलहों एवं झगड़ों से अपने को मुक्त रखना चाहता था, क्योंकि वह एक धार्मिक संस्था थी और धार्मिक कार्यों का निर्वहन ही उसका मुख्य उद्देश्य था। एक अन्तर और द्रष्टव्य है । जैन भिक्षुणी-संघ में दीक्षा के समय सभी तथ्यों की सूक्ष्म छानबीन कर ली जाती थी परन्तु बौद्ध भिक्षणी-संघ में प्रव्रज्या के पश्चात् उपसम्पदा प्रदान करने के समय इन प्रश्नों को पूछा जाता था। वैसे, इन प्रश्नों को प्रव्रज्या (संघ-प्रवेश) के समय ही पूछने का विधान करना चाहिए था ताकि प्रव्रज्या के पश्चात् इन दोषों के कारण किसी शिक्षमाणा को निराश न होना पड़े। प्रव्रज्या और आयु जैन भिक्षुणी-संघ में प्रवेश के समय आयु–स्थानांग टीका के अनुसार जैन भिक्षु तथा भिक्षुणी-संघ में बाल तथा वृद्ध को दीक्षा देना निषिद्ध था । परन्तु “बाल" शब्द कितनी उम्र का वाचक है-यह स्पष्ट नहीं १. भिक्षुणी विनय, ११५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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