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________________ जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी-संघ की स्थापना : १७ अपने अन्तिम दिनों में बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण देकर तथा अपने पुत्र विमल कौण्डन्य के उपदेश से प्रभावित होकर अम्बपाली ने भिक्षुणीसंघ में प्रव्रज्या ग्रहण की थी। अभिरूपा नन्दा कपिलवस्तु की ऐसी ही क्षत्रिय-कन्या थी जिसको अपने रूप पर अत्यधिक गर्व था परन्तु विवाह के पूर्व ही भावी पति की मृत्यु हो जाने के कारण उसके माता-पिता ने उसे भिक्षुणी बनने हेतु उपदेश दिया था। ___ बहुत सी स्त्रियाँ किसी भिक्षु या भिक्षुणी के उपदेश से प्रभावित होकर अथवा किसी प्रतीकात्मक घटना का आध्यात्मिक अर्थ लगाकर भिक्षुणी-संध में प्रवजित होती थीं। थेरी गाथा में एक अज्ञातनामा भिक्षुणी का ऐसा ही उल्लेख है, जिसकी महाप्रजापति गौतमी के उपदेश को सुनकर तथा अधिक आँच से पाकशाला में सब्जी जल जाने के कारण संन्यास-धर्म में रुचि उत्पन्न हुई थी, क्योंकि इस घटना से उसे संसार की सारी वस्तुओं की अनित्यता का बोध हुआ था । थेरी गाथा में वर्णित तिष्या धीरा, मित्रा५, भद्रा, उपशमा आदि ऐसी स्त्रियाँ थीं जिनकी प्रव्रज्या गौतमी के साथ हुई थी। विमला को, जो वैशाली के एक वेश्या की कन्या थी, महामौद्गल्यायन् के धर्मोपदेश को मुनकर लज्जा एवं ग्लानि की भावना उत्पन्न हुई और कुछ समय बाद उसने बौद्ध भिक्षुणी-संघ में प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। बौद्ध भिक्षुणी-संघ में वेश्याएँ भी प्रवेश लेती थीं। ये वेश्याएँ किसी भिक्षु या भिक्षुणी के उपदेश को सुनकर अत्यन्त प्रभावित हो जाती थीं तथा प्रव्रज्या ग्रहण कर लेती थीं। अड्ढकाशी वाराणसी की एक ऐसी वेश्या थी, जिसने बुद्ध के उपदेश से प्रभावित होकर अन्य वेश्याओं द्वारा अवरोध उपस्थित किए जाने पर भी प्रवजित होने के अपने दृढ़ निश्चय १. थेरी गाथा, परमत्थदीपनी टीका, १९. २. वही, १. ३. वही, ४,५. ४. वही, ६,७. ५. वही, ८. ६. वही, ९,१०. ७. वही, ३९. ८. वही, २२. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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