________________
१६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
स्त्रियाँ पति के प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने पर स्वयं भी प्रव्रजित हो जाती थीं । धम्मदिन्ना' ऐसी ही भिक्षुणी थी, जिसने पति के प्रव्रज्या ग्रहण कर लेने पर भिक्षुणी-संघ में प्रवेश लिया था । कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी थीं जो पति के जीवित अवस्था में उसकी आज्ञा न मिलने के कारण संघ में प्रवेश नहीं ले सकी थीं - किन्तु पति की मृत्यु के तुरन्त बाद उन्होंने संघ में प्रव्रज्या ग्रहण की थी । धम्मदिन्ना ऐसी ही एक कुलीन कन्या थी । इसी प्रकार सुदिन्निकार ने पति की मृत्यु के बाद अपने देवर ( पति के अनुज) के कलुषित विचारों को समझ कर प्रव्रज्या ग्रहण की थी । कुछ स्त्रियों ने प्रेम में असफल होने पर बौद्ध भिक्षुणी संघ में प्रवेश लिया था । कुण्डलकेशा ऐसो ही राजगृह के सेठ की लड़की थी, जिसने अपने प्रेमी से धोखा खाने पर सर्वप्रथम जैन भिक्षुणी संघ में तत्पश्चात् बौद्ध भिक्षुणी संघ में प्रवेश ले लिया था । पटाचारा ने जो अपने नौकर के प्रेम में फंसकर भाग गई थी, माता-पिता, भाई आदि की मृत्यु के पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण को थी ।
अत्यधिक सुन्दरता अथवा अत्यधिक कुरूपता के कारण जिन स्त्रियों का विवाह नहीं हो पाता था, वे भिक्षुणी बनने का प्रयत्न करती थीं । सुन्दर कन्या को प्राप्त करने के लिए अनेक पुरुष इच्छुक होते थे, अतः लड़की के माता-पिता को इस परिस्थिति में यह निर्णय करना कठिन हो जाता था कि वह लड़की को किस विशेष पुरुष को दें । अन्त में विवश होकर माता-पिता कन्या को भिक्षुणी बनने का आदेश दे देते थे । सुन्दरी उत्पलवर्णा श्रावस्ती के कोषाध्यक्ष की कन्या थी । उससे विवाह करने के लिए अनेक राजकुमार तथा श्रेष्ठि-पुत्र लालायित थे । अतः विवाह करने के लिए सबको सन्तुष्ट करने में अपने को असमर्थ पाकर उसके पिता ने उत्पलवर्णा को भिक्षुणी बनने का आदेश दिया था । अम्बपाली को अतिशय सुन्दरी होने के कारण ही नगर-सुन्दरी बनना पड़ा था ।
१. थेरी गाथा, परमत्थदीपनी टीका, १२.
२ . वही, १७.
३. भिक्षुणी विनय $ १५८.
४. थेरी गाथा, परमत्थदीपनो टीका, ४६.
५. वही, ४७.
६. वही, ६४.
७. वही, ६६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org