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________________ जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी-संघ की स्थापना : १५ मिलता है, जिन्होंने अरिष्टनेमि के उपदेश से प्रभावित होकर प्रव्रज्या ग्रहण की थी। केवल धनी तथा उच्च वर्ग की स्त्रियों ने ही नहीं बल्कि नर्तकियों तथा वेश्याओं ने भी भिक्ष णियों के कठोर जीवन का आदर्श ग्रहण किया था । उत्तराध्ययन टीका' में गणिका कोशा का नाम मिलता है, जिसने स्थूलभद्र नामक विद्वान् भिक्षु के सम्पर्क में आकर भिक्षुणीसंघ में प्रवेश लिया था। इसी प्रकार अत्यधिक सुन्दरता के कारण मल्लिकुमारी, जिन्हें श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार १९वाँ तीर्थंकर माना गया है, से विवाह के लिए अनेक राजा लालायित हो उठे थे। किन्तु उसने उन सभी राजाओं को उद्बोधित कर वैराग्य का पथिक बना दिया। मल्लि को पकते हुए भोजन के जल जाने पर स्वतः ही संसार को नश्वरता का बोध हुआ था। अतः कहा जा सकता है कि नारियाँ कभी परिस्थितिवश और कभी उपदेश या स्वप्रेरित वैराग्य से प्रव्रज्या ग्रहण करती थीं। बौद्ध-संघ में भिक्षुणी बनने के कारण जैन भिक्षुणी-संघ में स्त्रियों के प्रवजित होने के जो कारण थे लगभग वे ही कारण बौद्ध भिक्षणी-संघ के सन्दर्भ में सत्य प्रतीत होते हैं। थेरी गाथा में उल्लेख है कि पटाचारा के उद्योग से ५०० स्त्रियों ने भिक्षुणी बनकर उसका शिष्यत्व ग्रहण किया था। इन सभी को सन्तान-वियोग का दुःख सहन करना पड़ा था। इसी प्रकार वाशिष्ठी तथा कृशा गौतमी को पुत्र-वियोग के कारण तथा सुन्दरी को अपने छोटे भाई की मृत्यु के कारण संसार से वैराग्य उत्पन्न हुआ था और इन सभी ने बौद्ध भिक्षणी-संघ में प्रवेश ले लिया था । कुछ स्त्रियों ने अपने प्रिय सखियों की मृत्यु से दुःखी होकर प्रव्रज्या ग्रहण की थी । श्यामा कौशाम्बीनरेश उदयन की पत्नी श्यामावती की प्रिय सखी थी । श्यामावती की मृत्यु के बाद श्यामा ने बौद्ध-संघ में प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। उब्बिरी ने जो अपनी एकमात्र कन्या की मुत्यु हो जाने से दुःखी थी, बुद्ध के उपदेश को सुनकर बौद्ध-संघ में प्रव्रज्या ग्रहण की थी। १. उत्तराध्ययन टीका, द्वितीय भाग, पृ० २९-३० । २. थेरीगाथा, परमत्थदीपनी टीका, ५१. ३. वही, ६३. ४. वही, २८, २९. ५. वही, ३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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