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१२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ बौद्ध-संगीति में अपने इस क्रान्तिकारी विचारधारा के कारण आनन्द को दुक्कट के दण्ड का दोषी भी बताया गया था। परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि भिक्षुणियों की आने वाली पीढ़ियों ने उन्हें हमेशा आदर की दृष्टि से देखा। चतुर्थ शताब्दी ईसवी में चीनी यात्री फाहियान ने मथुरा में आनन्द की स्मृति में निर्मित एक स्तम्भ के प्रति भिक्षुणियों को सम्मान प्रदर्शित करते हुए देखा था। उसके इस कथन की पुष्टि उसके लगभग २०० वर्ष बाद आने वाले यात्री ह्वेनसांग ने भी को है।३
तुलना
___ यहाँ दोनों भिक्षुणी संघों की स्थापना के सम्बन्ध में अन्तर द्रष्टव्य है बौद्ध भिक्षणी-संघ की स्थापना इस धर्म के संस्थापक के विचारों के विपरोत तथा आशंकाओं के साथ हुई थी, जबकि जैन धर्म में स्त्रियों के संघ-प्रवेश को किसी आशंका की दृष्टि से नहीं देखा गया और न ही बौद्ध भिक्षुणी महाप्रजापति गौतमी की तरह किसी विशेष नारी को जैन भिक्षुणी-संघ की स्थापना के लिए बार-बार अनुनय-विनय ही करना पड़ा। प्रारम्भ से हो जैन संघ के द्वार स्त्रियों के लिए पूरी तरह से खुले हुये थे और वे निस्संकोच उसमें प्रवेश कर सकती थीं। जैन-संघ में भिक्षुणी बनने के कारण ___ समाज के प्रत्येक वर्ग की स्त्रियों ने दोनों भिक्षुणी संघों में प्रवेश लिया था। उनकी इस प्रकार की अनुकल प्रतिक्रिया के आध्यात्मिक कारणों के साथ-साथ अनेक सामाजिक, पारिवारिक एवं आर्थिक कारण थे।
स्थानांग तथा उसकी टीका में ऐसे दस सामान्य कारणों का उल्लेख है, जिनसे लोग दीक्षा ग्रहण करते थे:१. छन्दा (स्वेच्छा से)-महावीर के साथ शास्त्रार्थ के लिए आए
हुए गौतम आदि के समान । २. रोसा (आवेश से)---शिवभूति के समान । ३. परिजुण्णा (दरिद्रता से)-काष्ठहारक के समान ।
१. चुल्लवग्ग, पृ० ४११. २. Buddhist Record of the Western World, (Beal, S.) Vol, - I. P. 22. ३. Ibid, Vol, II, P. 213. ४. स्थानांग, १०/७१२, टीका, भाग पांच, पृ० ३६५-६६.
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