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१० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
जिन्हें अट्ठगुरुधम्म ( अष्ट गुरुधर्मं ) . कहा गया है ।' ये अष्टगुरुधर्म निम्न थे ।
१ "सौ वर्ष की उपसम्पन्न भिक्षुणी को सद्यः उपसम्पन्न भिक्षु का अभिवादन करना चाहिए, उसके सम्मान में खड़ा होना चाहिए तथा अञ्जलि जोड़ना चाहिए और समीचीकर्म ( कुशल समाचार) पूछना चाहिए ।" भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म प्रथम.
२ " वर्षाकाल में भिक्षुरहित ग्राम या नगर में किसी भी भिक्षुणी को वर्षावास नहीं करना चाहिए" - भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म सप्तम.
३ " प्रति १५ दिन बाद भिक्षुणी को भिक्षु संघ से उपोसथ और धर्मोपदेश (उवाद) की तिथि पूछनी चाहिए" - भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म षष्ठ. ४ " वर्षाकाल के बीत जाने पर प्रत्येक भिक्षुणी को दोनों संघों के समक्ष दृष्ट, श्रुत एवं परिशंकित दोषों की प्रवारणा करनी चाहिए" - भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म अष्टम.
५ " गम्भीर दोष करने पर भिक्षुणी को दोनों संघों के समक्ष पक्षमानत्त करना चाहिए" - भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म पञ्चम.
६ " दो वर्ष में षड्धर्मों को सोखने वाली शिक्षमाणा को दोनों संघों से उपसम्पदा प्राप्त करनी चाहिए ।" - भिक्षुणी विनय, गुरुधर्मं द्वितीय.
७ " किसी भी भिक्षुणी को किसी भिक्षु के प्रति अभद्र शब्द नहीं बोलना चाहिए" |
८ " किसी भी भिक्षुणी को किसो भिक्षु को उपदेश नहीं देना चाहिए " -- भिक्षुणी विनय, गुरुधर्म तृतीय.
१. चुल्लवग्ग, पृ० ३७४-७५
( भिक्षुणी विनय में अष्टगुरुधर्म नियम का प्रतिपादन करने के पहले जीवनपर्यन्त पाँच बातों से विरत रहने का उल्लेख है । ( १ ) हिंसा से विरत रहना । (२) अदत्तादान (बिना दिये कोई वस्तु न लेना) से विरत रहना । (३) काम-सम्बन्धी कार्यों से विरत रहना । ( ४ ) झूठ बोलने से विरत रहना । (५) सुरा-मद्य के सेवन से विरत रहना । - भिक्षुणी विनय, $१३.
२.
चुल्लवग्ग का यह ७ गुरुधर्म महासांघिकों के भिक्षुणी विनय में नहीं मिलता । इसकी जगह उनका चौथा गुरुधर्म निम्न है - भक्ताचं शय्यनासनं विहारो च भिक्षुणीहि भिक्षुतो भिक्षुसंघातो सादयितव्यम् ।
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