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जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षणी-संघ की स्थापना : ९ गौतमी इससे निराश नहीं हुई और उसने प्रव्रज्या पाने का अपना प्रयास जारी रखा । जब बुद्ध वैशाली के महावन की कुटागारशाला में ठहरे हुये थे, गौतमी फिर वहाँ पहँची। इस बार उसने अपनी वेश-भूषा बदल डाली थी। उसने अपने बालों को कटाकर काषाय वस्त्र धारण कर लिया था । वह कपिलवस्तु से वैशाली तक पैदल गयी थी। इस बार का उसका आचरण बिल्कुल भिक्षुणियों जैसा था। सम्भवतः इसके माध्यम से वह स्त्रियों के प्रति बुद्ध की शंका को मिटाना चाहती थी तथा यह प्रमाणित करना चाहती थी कि पूर्ववत् जीवन में सुख-सुविधाओं का उपभोग करने के बावजूद उच्च उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियाँ भो कठोर जीवन का पालन कर सकती हैं। कूटागारशाला में गौतमी फूले पैरों, धूलभरे शरीर एवं अश्रुमुखी हो द्वार-कोष्ठक के बाहर जा खड़ी हुई ।' __ गौतमी की यहीं पर आनन्द से भेंट हुई। आनन्द ने स्वयं बुद्ध के पास जाकर स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने की प्रार्थना की। किन्तु प्रथम तो उनका भी यह श्लाघनीय प्रयास असफल रहा। आनन्द ने बुद्ध से तीन बार प्रार्थना की और तीनों बार बुद्ध ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया । तब आनन्द ने दूसरे प्रकार से प्रव्रज्या की अनुज्ञा माँगने की सोची। उन्होंने बुद्ध से प्रश्न किया कि क्या तथागत प्रवेदित धर्म में स्त्रियाँ सोतापत्तिफल, सकृदागामिफल, अनागामिफल, एवं अर्हत्व को प्राप्त कर सकती हैं ? बुद्ध ने सकारात्मक रूप से सिर हिलाया । तब आनन्द ने चतुराईपूर्वक अपनी बात पर बल देते हुए कहा कि भगवन् ! यदि स्त्रियाँ अर्हत्वफल को प्राप्त कर सकती हैं तो महाप्रजापति गौतमी को, जो आप को मौसी, अभिभाविका, पोषिका, क्षीरदायिका रही हैंजननी की मृत्यु के बाद भगवान् को दूध पिलाया है, प्रव्रज्या मिलनी चाहिए।
बुद्ध आनन्द के तर्क से चुप हो गये तथा स्त्रियों को बौद्ध-संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी। परन्तु गौतमी तथा अन्य स्त्रियों को प्रव्रज्या का निर्देश देने के पहले उन्होंने आठ शर्तों के पालन का बन्धन रखा,
१. चुल्लवग्ग, पृ० ३७३; भिक्षुणी विनय, $५.
(भिक्षुणी विनय में श्रावस्ती के जेतवन आराम में बुद्ध के ठहरने का
उल्लेख है) २. चुल्लवग्ग, पृ० ३७४; भिक्षुणी विनय, $१०.
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