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परिशिष्ट-ब : २३९ है। इतिहासविदों के अनुसार, जैन तीर्थंकरों में पार्श्व एवं महावीर की ऐतिहासिकता स्वीकृत की जा सकती है-शेष तीर्थंकरों को वे पौराणिक ही मानते हैं । इस आधार पर यह माना जा सकता है कि पार्श्व एवं महावीरकालीन जिन भिक्षुणियों के उल्लेख मिलते हैं-सम्भवतः वे ऐतिहासिक हों। फिर भी, पार्श्व एवं महावीरकालीन उल्लिखित सभी भिक्षुणियों को ऐतिहासिकता को असंदिग्ध रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता। इनमें भी पौराणिकता के तत्त्व प्रविष्ट हो गये हैं। महावीरकालीन राजा श्रेणिक (बिम्बिसार) की रानियों के जो उल्लेख अन्तकृतदशांग में मिलते हैं उनकी ऐतिहासिकता पर प्रश्न चिह्न लगाता है । कालो, सुकाली, महाकालो आदि नामों की कल्पना हो उनकी ऐतिहासिकता को संदिग्ध बना देती है। वस्तुतः किसी भी धर्म-परम्परा के साहित्यिक उल्लेखों में ऐतिहासिकता और पौराणिकता के बीच बहुत स्पष्ट रेखा खींच पाना कठिन है। यह सम्भव है कि राजा श्रेणिक के अन्तःपूर की कुछ स्त्रियों ने महावीर के समीप भिक्षुणी-दीक्षा अंगीकार को हो, किन्तु उनका जीवन-वृत्त ठीक वैसा ही था जैसा अन्तकृतदशांन अथवा अन्य साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित है-- यह ऐतिहासिकता की दृष्टि से बहुत जटिल समस्या है। हमारे पास किसी पुराकालीन व्यक्ति की ऐतिहासिकता को स्वीकार करने के लिए मुख्यतः साहित्यिक आधार ही उपलब्ध हैं और हमें केवल अपने तर्क-बल से यह निश्चय करना होता है कि इसमें कितना ऐतिहासिक है और कितना पौराणिक । ___बौद्ध भिक्षुणियों के सम्बन्ध में भी उपर्युक्त बातें सत्य प्रतीत होतो हैं । जैन धर्म के तीर्थंकर की अवधारणा के समान बौद्ध धर्म में भी गौतम बद्ध के पूर्व अनेक बद्धों की कल्पना की गई है। उन बुद्धों की प्रधान भिक्षुणियों के उल्लेख हमें एक पश्चातकालीन ग्रन्थ बुद्धवंस में मिलते हैं । जिस प्रकार शाक्यवंशीय गौतम बुद्ध के पूर्व प्रायः सभी बुद्ध, इतिहासकारों की दृष्टि में, ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं माने गये हैं, उसी प्रकार उन बुद्धों के काल की भिक्षणियों की ऐतिहासिकता भी संदिग्ध ही है। गौतमबुद्धकालीन भिक्षुणियों के उल्लेख हमें मुख्यतः थेरीगाथा एवं उसकी अट्ठकथा परमत्थदीपनी से प्राप्त होता है। यद्यपि कुछ प्रसिद्ध भिक्षुणियों यथा-क्षेमा, उत्पलवर्णा, पटाचारा, महाप्रजापतिगौतमी, अर्द्धकाशी, कृशागौतमी, अम्बपाली, स्थूलनन्दा आदि के उल्लेख हमें विनय-पिटक, निकायों एवं महासांघिक सम्प्रदाय के भिक्षुणी विनय नामक ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। अतः इन भिक्षुणियों की ऐतिहासिकता को स्वीकार किया जा सकता है।
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