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२४० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ
जहाँ तक साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित महावीर एवं बुद्ध की उत्तरकालीन भिक्षुणियों की ऐतिहासिकता का प्रश्न है, उन्हें भी यथारूप स्वीकार नहीं किया जा सकता। कालान्तर के ग्रन्थों में अपनी धर्म - प्रभावना में वृद्धि के लिए अनेक कथाओं की रचना की गई और इसमें अनेक काल्पनिक पात्रों को भी स्थान दिया गया । अतः महावीर एवं बुद्ध के परवर्तीकाल में रचित ग्रन्थों में उल्लिखित सभी भिक्षुणियों की ऐतिहासिकता को स्वीकार करना कठिन सा प्रतीत होता है। फिर भी उनमें उल्लिखित कुछ भिक्षुणियाँ निश्चय ही ऐतिहासिक प्रतीत होती हैं। जैन साहित्य में प्रसिद्ध आचार्य स्थूलभद्र की सात बहनों द्वारा दीक्षा लेने का उल्लेख है । स्थूलभद्र की ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से सिद्ध है -- इसी आधार पर उनकी बहनों की भी वास्तविकता को हमें स्वीकार करना होगा । फिर, इनके कथानक में कहीं भी अतिरंजित वर्णन नहीं है । इसी प्रकार प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा की ऐतिहासिकता को अस्वीकार करना कठिन है। इनके उल्लेख हमें अनेकशः बौद्ध ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं । साथ ही, दीपवंस एवं महावंस में उल्लिखित भिक्षुणियों की ऐतिहासिकता का प्रश्न भी विचारणीय है। महावंस में, स्थूलतः, पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर लगभग चौथी शताब्दी ईस्वी तक की घटनाओं का वर्णन है । इसकी अधिकांश सामग्री, निश्चय ही ऐतिहासिक सत्य के निकट प्रतीत होती है । बिम्बिसार से अशोक तक जिन मुख्य नरेशों के नाम महावंस में प्राप्त होते हैं, उन्हीं राजाओं में से कुछ नाम पुराणों में भी हैं । इन नरेशों के राज्यकाल भी थोड़े-बहुत अन्तर के साथ लगभग समान ही हैं । अतः महावंस में जिन भिक्षुणियों के उल्लेख हैं, उनकी ऐतिहासिकता को स्वीकार करने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए । परन्तु गौतमबुद्धोत्तरकालीन जिन
द्ध भिक्षुणियों के उल्लेख हमें साहित्यिक साक्ष्यों (विशेषकर थेरीअपदान पालि) से प्राप्त होते हैं, उनकी ऐतिहासिकता सर्वथा संदिग्ध है । इन भिक्षुणियों -- यथा उदकदायिका, उत्पलदायिका, एकासनदायिका, कटच्छुभिक्खदायिका आदि) के नाम सम्भवतः कथा को प्रसिद्ध बनाने के लिए कल्पित किये गये । उनकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करने के लिए हमारे पास कोई स्रोत नहीं है ।
जैन एवं बौद्ध धर्म के साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर उनके भिक्षुणी संघ का इतिहास प्रस्तुत करने में हमारा यह प्रथम प्रयत्न है | अतः सम्भव है कि इसमें कुछ अपूर्णताएँ हों -- हम यह अपेक्षा करते हैं कि भविष्य में कोई विद्वान इस महत् कार्य को पूर्ण करेगा ।
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