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२३८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ सर्पा-List of Brahmi Inscriptions, 1020. बोधि-Ibid, 1059. सर्पिला-Ibid, 1060. आषाढ़मित्रा-Ibid, 1098. कोदी-Ibid, 1104. बोधि-Ibid, 1240. सिद्धार्थी-Ibid, 1242. धर्मा-Ibid, 1246. बुद्धरक्षिता-Ibid, 1250. संघरक्षिता-Ibid, 1262. रोहा-Ibid, 1264. माला-Ibid, 1286. सुमुद्रिका-Ibid. बुद्धरक्षिता-Ibid, 1295. संघमित्रा-Ibid
जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों के उपर्युक्त संक्षिप्त विवरण के सम्बन्ध में कुछ तथ्य द्रष्टव्य हैं। प्रथमतः, ये विवरण मुख्यतः साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों पर अवलम्बित हैं । यह दुर्भाग्य रहा है कि जैन एवं बौद्ध दोनों धर्मों में भिक्षुणी-संघ के इतिहास को सुरक्षित रखने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया। यत्र-तत्र बिखरे हुए कुछ सन्दर्भो को छोड़कर भिक्षुणियों के इतिहास के बारे में जैन धर्म की दोनों ही परम्पराएँ तथा बौद्ध धर्म में विकसित हुए अनेक निकाय लगभग मौन ही हैं। हमारे पास भिक्षुणियों के इतिहास से सम्बन्धित जो कुछ सामग्री उपलब्ध है भी, उसका पूर्णतः उपयोग नहीं किया गया। अभी अनेक ऐसे अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थ एवं अभिलेख हैं जिनसे भिक्षुणियों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त हो सकती हैं। निश्चय ही, हजारों ऐसी भिक्षुणियाँ रहीं होंगी जिन्होंने इन धर्मों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया होगा परन्तु आज हमें उन्हें "अनाम" मानकर ही सन्तोष कर लेना होगा।
इन साक्ष्यों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता का प्रश्न भी विचारणीय है। जैन परम्परा ऋषभ के काल से लेकर महावीर के काल तक अनेक भिक्षुणियों का उल्लेख करती है । जिस प्रकार जैन तीर्थंकरों की पौराणिकता और ऐतिहासिकता का प्रश्न विचारणीय है-उसी तरह जैन भिक्षुणियों की पौराणिकता एवं ऐतिहासिकता का प्रश्न भी विचारणीय
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