________________
२२६ : जेन और बौद्ध भिक्षुणी संघ
न केवल जैन स्रोतों से बल्कि बौद्ध स्रोतों से भी सिद्ध की जा चुकी है । पुनः इनके उल्लेखों में चमत्कारपूर्ण या अलौकिक वर्णन नहीं है । जहाँ तक श्रेणिक (बिम्बिसार - अजातशत्रु का पिता) की अधिक संख्या में पत्नियों के दीक्षित होने का प्रश्न है— उन सभी की ऐतिहासिकता को निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेना कठिन है । यह सम्भव है कि उसकी कुछ रानियाँ जैन धर्म के प्रति श्रद्धावान् रही हों तथा उनमें से कुछ ने दीक्षा भी ग्रहण की हो ।
( महावीरोत्तरकालीन जैन भिक्षुणियां ) उत्तरा - उत्तरा० नि०, पृ० १८१, विशेषावश्यक भाष्य, ३०५३ । कीर्तिमती - आव० चू०, द्वितीय भाग, पृ० १९४.
धारिणी - वही, पृ० १८९.
स्थविर आर्य सम्भूतिविजय के शिष्य स्थविर स्थूलभद्र की सात बहनों के दीक्षा ग्रहण करने का उल्लेख प्राप्त होता है । इनके नाम निम्न थेयक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा । इन्होंने भाई के साथ ही आर्य सम्भूतिविजय से शिष्यत्व ग्रहण किया था । इसकी सूचना कल्पसूत्र की स्थविरावली ( कल्पसूत्र, २०८ ) से प्राप्त होती है जो एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में मान्य है ।
सरस्वती - निशीथ विशेष चूर्णि, द्वितीय भाग, २८६०.
याकिनी - आवश्यक टीका प्रशस्ति उद्धृत, समदर्शी आचार्य. हरिभद्र ( पं० सुखलाल संघवी ), पृ० १०७. मरुदेवी - खरतरगच्छ का इतिहास, पृ० १२.
हेमदेवी - वही, पृ० ४४.
गुणश्री - वही, पृ० ५४.
खरतरगच्छ के आचार्य जिनपतिसूरि द्वारा आर्या अभयमति, आसमति तथा श्री देवी आदि स्त्रियों को दिक्षा देने का उल्लेख है । - वही, पृ० ५३.
—
समयश्री - श्री षड्दर्शननिर्णय, पृ० ३३. महिमश्री - वही | मेरुलक्ष्मीश्री - वही ।
(ब) अभिलेखों में उल्लिखित जैन भिक्षुणियाँ |
सिंहमित्रा - List of Brahmi Inscriptions, 16. शष्ठिसिंहा - Ibid. क्षुद्रा – Ibid, 18.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org