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________________ जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी-संघ की स्थापना : ५ तपस्या करने का उल्लेख है। इस पर्व से यह मालूम होता है कि सत्यवती अपनी दो पुत्र-वधुओं के साथ तप करने वन में चली गई और तपस्या के द्वारा ही अपना शरीर त्यागा। इसी प्रकार आश्रमवासिक पर्व' में धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती द्वारा घोर तपस्या करने का उल्लेख है। मौसलपर्व में उल्लेख है कि जब कृष्ण मृत्यु को प्राप्त हो गये तो उनकी सत्यभामा आदि पत्नियाँ वन में चली गयीं और कठिन तपस्या में लीन हो गयीं। इसी पर्व में अकर जी की पत्नियों के वन में जाने और वहाँ तपस्या करने का उल्लेख है। महाभारत के शान्ति-पर्व' में सुलभा की कहानी भिक्षुणियों के सम्बन्ध में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत करती है। सुलभा चूंकि योग्य पति न पा सकी थी, अतः वह संन्यास-धर्म में दीक्षित हो गयी थी और इतस्ततः अकेली ही विचरण करती थी। वह जनक से मोक्ष-धर्म पर वार्तालाप करने आयी थी। उसने जनक को अध्यात्म से भरा हुआ सारगर्भित उपदेश दिया था। सुलभा के लिए "भिक्षुकी" शब्द का प्रयोग किया गया है (योग धर्ममनुष्ठिता महीमचचारैका सुलभा नाम भिक्षुकी) उसे "स्वधर्मेऽसिधृतव्रता" कहा गया है। राजा जनक ने उसे संन्यासधर्म में दीक्षित ब्राह्मणी समझा था, लेकिन उसने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह एक क्षत्रिय कन्या है। इस उदाहरण से दो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकलते हैं ।'' प्रथम तो यह कि स्त्रियाँ भी संन्यासिनी होती थीं और सम्भवतः यह एक प्राचीन परम्परा थी । दूसरे, संन्यासधर्म में दीक्षित होने के लिए जाति-प्रथा बाधक नहीं थी। सुलभा के दृष्टान्त से पता चलता है कि ब्राह्मण स्त्रियाँ संन्यासिनी तो होती ही थीं जैसा कि जनक को शंका हुई थी। किन्तु क्षत्रिय कन्याएँ भी संन्यासमार्ग का अनुसरण कर सकती थी, क्योंकि स्वयं सुलभा ने अपने को क्षत्रिय कन्या बताया था। इस प्रकार बृहदारण्यक उपनिषद् की मैत्रैयी, रामायण की शबरी १. महाभारत, आश्रमवासिक पर्व, ३७ वां अध्याय. २. वही, मौसलपर्व, ७/७४. ३. वही, मौसलपर्व, ७/७२. ४. वही, शान्तिपर्व, ३२०/७/१९३. 4. Contributions to the History of Brahmanical Ascet. icism, P. 63. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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