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४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ सकती हूँ। वह कहती है कि "उन वस्तुओं को लेकर मैं क्या करूँगी, जिनसे अमरत्व अर्थात् मुक्ति नहीं प्राप्त की जा सकती"।' यहाँ मैत्रेयी को "ब्रह्मवादिनी" कहा गया है । ब्रह्मवादिनी नारियों के लिए उपनीत होना एवं अग्निपूजा करना, वेदाध्ययन करना तथा भिक्षाटन करना आवश्यक था।
मैत्रेयी का अपने पति के साथ संन्यास-मार्ग का अनुसरण करना, इस तथ्य का सूचक है कि उस समय ऐसी परम्परा भी थी, जिनमें स्त्रियाँ प्रव्रज्या धारण करती थीं। रामायण तथा महाभारत-काल में संन्यासिनी
संन्यासिनियों अथवा भिक्षणियों का उल्लेख हम रामायण तथा महाभारत में प्रचुरता से पाते हैं। रामायण तथा महाभारत, इन दोनों महाकाव्यों का अन्तिम संकलन यद्यपि ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी की घटना है, परन्तु इनमें निहित परम्पराएँ छठी शताब्दी ईसा पूर्व की प्रतीत होती हैं। __रामायण में 'भिक्षुणी' 'तपसी' 'श्रमणी' आदि शब्दों के उल्लेख से यह स्पष्ट होता है कि उस समय संन्यासिनियों अथवा भिक्षुणियों का . अस्तित्व था और उनकी एक परम्परा थी। रामायण में पति के न रहने पर भिक्षणी जैसा जीवन उत्कृष्ट माना गया है। राम के वन-गमन के समय सीता द्वारा भिक्षुणी-जीवन की प्रशंसा की गयी है। अरण्यकाण्ड में शबरी को 'श्रमणी' तथा 'तापसी' कहा गया है। शबरी के भिक्षुणीपन की प्रशंसा करते हुए उसे "श्रमणी संशितव्रताम्" कहा गया है-अर्थात् वह अपने व्रतों के पालन में लगी रहती थी। इससे यह संकेत मिलता है कि श्रमणियों के लिए कुछ व्रतों का विधान था।
रामायण की तरह महाभारत से भी यह ज्ञात होता है कि नारियाँ वन में तपस्या करने चली जाती थीं। आदिपर्व' में नारियों द्वारा १. येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम् -बृहदारण्यकोपनिषद्, ४/५. २. ब्रह्मवादिनीनामुपनयनमग्नीन्धनंवेदाध्ययनं स्वगृहे च भिक्षाचर्येति
-उद्धृत, काणे, पी० वी०, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग प्रथम, पृष्ठ २१९. ३. रामायण, २/२९/१३. ४. वही, ३/७३/२६; ३/७४/७. ५. वही, ३/७४/१०. ६. महाभारत, आदिपर्व, ३/७४/१०,
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