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२१४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ तो संघ में प्रवेश करने का अब उतना आकर्षण नहीं रह गया । ऐसा प्रतीत होता है कि द्वितीय-तृतीय शताब्दी के पश्चात् बहुत कम नारियाँ संघ में प्रवेश लेती थीं।
परवर्तीकाल में बौद्ध भिक्षुणियाँ सुप्रतिष्ठित नियमों के प्रतिकूल आचरण करने लगी थीं। मालतीमाधव में कामन्दकी, अवलोकिता और बुद्धरक्षिता के वर्णन से उनके आचारिक पतन की सूचना प्राप्त होती है। मालती तथा माधव का विवाह कराने में भिक्षुणी कामन्दकी के उत्साह को देखकर उसकी शिष्या अवलोकिता को आश्चर्य होता है।' अवलोकिता कहती है कि भोजन के समय को छोड़कर कामन्दकी का सारा समय मालती का अनुसरण करने में बीत जाता है। इसी प्रकार भिक्षुणी बुद्धरक्षिता संन्यास जीवन में भी कामशास्त्र के ज्ञान का उपयोग करती है तथा प्रेमी-युगल के कामभाव को उत्तेजित करती है ।
भिक्खुनी-पातिमोक्ख नियम के अनुसार दिव्य-शक्ति का प्रदर्शन अपराध था । परन्तु मालतीमाधव में बौद्ध भिक्षुणियाँ दिव्य शक्ति का प्रदर्शन कर प्रेमी युगल को परस्पर मिलवाने का कार्य करती हैं। यह सम्भव है कि ये उल्लेख विरोधी पक्ष द्वारा प्रस्तुत होने के कारण कुछ अतिरेकपूर्ण हों।
भिक्खुनी पातिमोक्ख नियम के अनुसार चोरनी या अपराधिनी नारी को उपसम्पदा देना निषिद्ध था। संघ में प्रवेश करने के पश्चात अपराधिनी नारी दण्ड से मुक्त हो जाती थी। श्रावस्ती की एक स्त्री का उदाहरण प्राप्त होता है जिसने पर पुरुष से व्यभिचार किया। उसका पति जब उसको मारने को उद्धत हुआ तो उसने भिक्षुणी-संघ में प्रवेश ले लिया । पति ने जब कोशल-नरेश से शिकायत की तो उन्होंने उत्तर दिया कि चूंकि वह भिक्षुणी बन गई है, अतः उसे कोई दण्ड नहीं दिया जा सकता। यह उदाहरण भिक्षुणी-संघ की स्थापना के प्रारम्भिक काल का है । कालान्तर १. मालतीमाधव, प्रथम अध्याय। २. जो कोविकालो भअवदीए पिण्डपारण वेलं विसज्जिअ मालदी अणुवट्ट माणाएँ।
-वही, तृतीय अध्याय । ३. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, १०४ । ४. वही, भिक्खुनी संघादिसेस, २। ५. "भिक्खुनीसु पब्बजिता न सा लब्भा किंची कांतु"
-पाचित्तिय पालि, पृ० ३०१ ।
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