________________
भिक्षुणी-संघ का विकास एवं स्थिति : ११३ नष्ट हो चुके थे। लगभग इसी समय के अभिलेखों एवं साहित्यिक साक्ष्यों में भिक्षुणियों की अत्यल्प सूचना से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध भिक्षुणियाँ अब छिट-पुट ही रह गयी थीं तथा संघ एवं समाज में अब उनकी कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं रह गई थी।
ऐसा प्रतीत होता है कि नारियाँ भिक्षुणी संघों में प्रवेश की अब उतनी इच्छुक नहीं थीं। प्रारम्भिक काल में भिक्षुणी-संघ का सबसे प्रमुख योगदान ऐसी नारियों को आश्रय प्रदान करना था जिनके पति, पिता या भाई प्रव्रज्या ग्रहण कर लेते थे अथवा उनकी मृत्यु हो जाती थी । ऐसी स्त्रियाँ निराश्रित हो जाती थीं तथा समाज में उनके लिए अपेक्षित स्थान नहीं रह जाता था।
परवर्तीकाल में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति यद्यपि निम्न ही थी परन्तु स्त्रियों को अब सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए जाने लगे थे। द्वितीय तृतीय शताब्दी ईस्वी के धर्मशास्त्रकारों ने स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए और उनकी सुरक्षा तथा जीवननिर्वाह के सम्बन्ध में विभिन्न नियम बनाए । याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार स्त्री और बालक किसी भी स्थिति में उपहार की वस्तु नहीं हो सकते । वशिष्ठ धर्मसूत्र के अनुसार पति अपने पत्नी की समुचित व्यवस्था किए बिना दूर-यात्रा पर नहीं निकल सकता था। यदि पुरुष दूसरा विवाह करता था, तो उसे अपनी प्रथम पत्नी के जीवन-निर्वाह की समुचित व्यवस्था करनी पड़ती थी।
इसी प्रकार कालान्तर में स्त्री-धन के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया। मनु ने स्त्रीधन के ६ प्रकार बताया है। १-२-३. पिता-माता-भाई के द्वारा दिया गया धन, ४. पति के द्वारा दिया गया धन, ५-६. विवाह के समय पितागृह में प्राप्त उपहार तथा पतिगृह में प्राप्त उपहार । __सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हो जाने पर संरक्षक के न रहने पर भी स्त्रियों के सामने जीवन-निर्वाह की अब उतनी कठिन समस्या नहीं रह गई, अतः जब स्त्री को सामाजिक तथा आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो गई 1. Buddhist Records of the Western World, Vol. III, P. 259,
268. 2. Position of Women in Hindu Civilization, p. 252. ३. याज्ञवल्क्य स्मृति, २/१७५ । ४. वशिष्ठ धर्मसूत्र, २८/२ । ५. मनुस्मृति, ९/१९४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org