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१९९८ : जेन और बौद्ध भिक्षुणी संघ
कि भिक्षुणियों को भिक्षुसंघ के समक्ष ये सारे कार्य करने आवश्यक थे । इसके विपरीत, भिक्षु केवल भिक्षु-संघ के प्रति ही उत्तरदायी रहता था --- भिक्षुणी - संघ से उसका इस सन्दर्भ में कोई सम्बन्ध नहीं था ।
परन्तु उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह धारणा नहीं बना लेनी चाहिए कि बौद्ध भिक्षुणियाँ अत्यन्त निम्न जीवन जीती थीं । यद्यपि भिक्षु की 'तुलना में उनकी स्थिति निम्न थी, किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि संघ की वे एक सम्मानित सदस्या होती थीं । ज्ञान के क्षेत्र में भी वे अग्रणीं थीं । कोशल नरेश प्रसेनजित का भिक्षुणी क्षेमा से दार्शनिक वार्तालाप तथा श्रावक विशाख का धम्मदिन्ना से दार्शनिक शंकाओं का समाधान प्राप्त करना यह दर्शाता है कि वे गूढ़ दर्शन के क्षेत्र में पारंगत थीं तथा कुशलतापूर्वक किसी भी गंभीर विषय पर वार्तालाप कर सकती थीं । अभिलेखों में भी उन्हें त्रिपिटका तथा सूतातिकिनी कहा गया है, जो उनकी विद्वत्ता का परिचायक है । इसी प्रकार शुक्ला भिक्षुणी द्वारा महती सभा में अमृतमय धर्मोपदेश देने का उल्लेख है ।" राजा-महाराजा एवं बड़ेबड़े राजकीय अधिकारी तक उनको प्रणाम करने एवं उनका अभिनन्दन करने में अपना गौरव समझते थे । कोशल नरेश प्रसेनजित द्वारा भिक्षुणी क्षेमा का सम्मानपूर्वक अभिवादन करना यह दिखाता है कि राजा लोग योग्य भिक्षुणी का अपेक्षित सम्मान करते थे । जिस प्रकार भिक्षु के सम्मान स्तूप आदि निर्मित हुए, उसी प्रकार भिक्षुणियों के सम्मान में भी कालांतर में स्तूप आदि निर्मित किये गये । कोशल में महाप्रजापति गौतमी के सम्मानार्थ बने हुये स्तूप एवं उसके निकट विहार का उल्लेख फाहियान ' एवं ह्व ेनसांग दोनों ने किया है । अतः यह कहा जा सकता है कि भिक्षु की तुलना में निम्न स्थिति होने के बावजूद बौद्ध संघ में भिक्षुणियों का भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान था ।
में
तुलना : दोनों ही धर्मों में जाति, लिंग, वर्ण आदि का भेद किये बिना पुरुष और स्त्री की समानता पर बल दिया गया था, परन्तु इनकी संगठनात्मक व्यवस्था पर तत्कालीन सामाजिक मूल्यों का गहरा प्रभाव पड़ा है । जातककालीन भारतीय समाज में तथा बाद के युग में भी पुरुष की 'तुलना में स्त्री का स्थान निम्न था । इस सामाजिक स्थिति का प्रभाव
१. द्रष्टव्य - इसी ग्रन्थ का चतुर्थ अध्याय ।
२. Buddhist Records of the Western World, Vol. I, P. 25.
३. Ibid, Vol. III. P. 260.
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