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संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १६७ ३० ३० जो भिक्षुणी संघ के लिए प्राप्त वस्तु को
__ अपने उपयोग में लाये। थेरवादी तथा महासांघिक-दोनों निकायों में भिक्षुणियों के ३० निस्सग्गिय पाचित्तिय धर्म (नियम) हैं। भिक्षणी-विनय में इसे “निःसर्गिक पाचत्तिक' कहा गया है। दोनों के विषय प्रायः समान हैं । महासांघिक भिक्षुणी-विनय का १३ वाँ नियम कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ थेरवादी विनय के चोथे,पाँचवें तथा छठे नियम में प्राप्त होता है । इसी प्रकार महासांघिक निकाय का १२ वाँ नियम कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ थेरवादी निकाय के आठवें, नवें तथा दसवें नियम में प्राप्त होता है-यद्यपि इनके मूल अर्थ एक हैं। महासांघिक भिक्षुणी-विनय का १५ वाँ नियम थेरवादी विनय (नियम) में नहीं प्राप्त होता। इसी प्रकार १७ वाँ, १८ वाँ तथा २१ वाँ नियम भी थेरवादी निस्सग्गिय पाचित्तिय में नहीं है। यद्यपि कुछ शाब्दिक परिवर्तन के साथ पाचित्तिय नियम में प्राप्त होता है। महासांघिक निःसर्गिक पाचत्तिक का १७ वाँ तथा १८ वाँ नियम थेरवादी भिक्खुनी पाचित्तिय के क्रमशः २३ वें तथा ७७ वें नियम के समान है तथा २१ वाँ नियम थेरवादी भिक्खु निस्सग्गिय पाचित्तिय के २१ वें नियम के समान है। महासांघिक निकाय का २३ वाँ नियम थेरवादी विनय में नहीं प्राप्त होता।
पाटिदेसनीय
पाटिदेसनीय (प्रतिदेशना) अपराध मुख्य रूप से भोजन से सम्बन्धित था। यह लहुकापत्ति श्रेणी में आता था। इसमें एक योग्य भिक्षुणी के समक्ष अपने अपराध को स्वीकार कर लेने पर इसका निराकरण हो जाता था। अच्छे भोजन के प्रति भिक्ष-भिक्षणियों के मन में ममत्व या लालच का भाव नहीं आना चाहिए-इस दण्ड की यही मुख्य शिक्षा थी। स्वस्थ
१. “या पुन भिक्षुणी चीवर-सन्निचयं कुर्यात निस्सर्गिक-पाचत्ति कम्'
-भिक्षुणी विनय, ६१७६. २. "दसाहपरमं अतिरेकपत्तो धारेतब्बो, तं अतिक्कामयतो निस्स ग्गियं पाचि
त्तियं"-पातिमोक्ख, भिक्खु निस्सग्गिय पाचित्तिय, २१. ३. "या पुन भिक्षुणी जानन्ती परोपगतम् चेतापयेन निस्सर्गिक पाचत्तिक"
-भिक्षुणी विनय, ६१८२.
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