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१६६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
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जो भिक्षुणी विशिष्ट परिस्थिति (चीवर फट जाने अथवा नष्ट हो जाने पर) के अतिरिक्त अज्ञात गृहपति से चीवर माँगे । यथेच्छ चीवर प्राप्त होने पर आवश्यकता से एक कम चीवर ग्रहण करना चाहिए, जो भिक्षुणी इस नियम का अतिक्रमण करे । जो भिक्षुणी उद्देश्यपूर्वक उत्तम चीवर की याचना करे ।
जो भिक्षुणी प्राप्त चीवर में परिवर्तन कराये । जो भिक्षुणी चीवर माँगने के लिए किसी के पास दो-तीन बार से अधिक जाये ।
जो भिक्षुणी सोना, चाँदी ( जातरूपरजतं) को ग्रहण करे ।
भिक्षुणी नाना प्रकार के रूपयों का व्यवहार ( रूपियसंवोहार) करे ।
जो भिक्षुणी नाना प्रकार के चीवर, भैषज्य आदि का क्रय-विक्रय करे ।
भिक्षुणी पाँच से कम छेद वाले पात्र को बदल कर नया पात्र ले |
जो भिक्षुणी घी, तेल, मधु, मक्खन, खांड को एक सप्ताह से अधिक रखकर उसको ग्रहण करे ।
जो भिक्षुणी स्वयं किसी भिक्षुणी को चीवर देकर बाद में कुपित तथा असन्तुष्ट हो ।
जो भिक्षुणी सूत माँगकर जुलाहे से चीवर बुनवाये ।
जो भिक्षुणी जुलाहे से कहकर चीवर में परिवर्तन करवाये ।
जो भिक्षुणी अतिरिक्त चीवर को चीवर - काल से अधिक समय तक ग्रहण करे ।
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