________________
संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १६५
जो भिक्षुणी एक वस्तु कहकर दूसरी वस्तु मँगाये । (अयं चेतापेत्वा अनं चेतापेय्य) जो भिक्षुणी एक वस्तु कहकर दूसरी वस्तु मँगाये । (अझदत्थिकेन परिक्खारेन अञ्जद्दिसिकेन संचिकेन अझं चेतापेय्य) जो भिक्षुणी याचित वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तु मँगाये। जो भिक्षुणी अन्य निमित्त वाले वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तु मँगाये (अञ्चदत्थिकेन परिक्वारेन अब्रुद्दोसिकेन महाजनिकेन अझं चेतापेथ्य) जो भिक्षुणी अन्य निमित्त वाले वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तु मँगाये। (अन्जुद्दिसि. केन परिक्खारेन अञ्जद्दिसिकेन महाजनिकेन संयाचितेन अनं चेतापेय्य) जो भिक्षुणी अन्य निमित्त वाले वस्तु के अतिरिक्त अन्य वस्तु मँगाये । (अनदत्थिकेन परिक्खारेन अझुद्दिसिकेन पुग्गलिकेन संयाचिकेन अनं चेतापेय्य) जो भिक्षुणी शीतकाल के लिए मूल्यवान (चार कंस से अधिक मूल्य का) वस्त्र मँगाये । जो भिक्षुणी ग्रीष्मकाल के लिए ढाई कंस से अधिक (अड्ढतेय्यकंसपरम) मूल्य का वस्त्र मँगाये। जो भिक्षुणो दस दिन से अधिक अतिरेक चीवर धारण करे। जो भिक्षुणी भिक्षुणियों की सम्मति के बिना एक रात्रि के लिए भी पाँच चीवरों से रहित रहे। जो भिक्षुणी अकालचीवर को एक मास से अधिक रखे।
२०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org