________________
१६८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ भिक्षुणी को तेल, घी, मधु, मछली, मांस आदि लेने से मना किया गया था।' इस नियम का अतिक्रमण करने पर ही उसे प्रतिदेशना करनी पड़ती थी।
भिक्षुणियों के पाटिदेसनीय धर्म निम्न हैंभि० पाटि. भि० प्रति (थेरवादी) देशनिक (महासांघिक)
विषय जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये घी (सप्पि) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये दधि (दधि) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये तेल (तेल) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये मधु (मधु) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये मक्खन (नवनीतं) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये मत्स्य (मच्छं) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये मांस (मंसं) माँग कर खाये। जो भिक्षुणी स्वस्थ होते हुये दूध (खीरं)
माँग कर खाये। दुक्कट (दुष्कृत्य) ___ मन में बरी भावना लाने या बरे कर्मों को करने पर यह दण्ड दिया जाता था। छोटे अपराधों पर दोषी व्यक्ति को इसी का दण्ड दिया जाता था। यद्यपि इस दण्ड को भिक्खु अथवा भिक्खुनी पातिमोक्ख में शामिल नहीं किया गया है तथापि सेखिय नियमों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति इस दण्ड का भागी बनता था । १. परिवार पालि, पृ० २६४. २. "यं हि दुळुकतं विरूपं वा कतं तं दुक्कटम्".
-समन्तपासादिका, भाग तृतीय, पृ० १४५८. ३. पाचित्तिय पालि, पृ० २४५-२८०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org