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१३८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणौ-संघ श्रामणेरी के समान शिक्षमाणा को भी पातिमोक्ख की वाचना वाले उपोसथ में उपस्थित होने का निषेध था।' भिक्खुनी (भिक्षुणी)
दो वर्ष तक षड् सिक्खापदों का पालन करने के पश्चात् जब गिहीगता शिक्षमाणा कम से कम १२ वर्ष की तथा कुमारीभूता शिक्षमाणा कम से कम २० वर्ष की हो जाती थी, तब उसे भिक्षुणी-संघ तथा भिक्षु-संघ में "अतिचतुत्थकम्म" के माध्यम से उपसम्पदा प्रदान की जाती थी । अब वह भिक्षुणी कहलाती थी। उपसम्पदा प्रदान करने के पूर्व शिक्षमाणा से अन्तरायिक प्रश्न पूछे जाते थे, ताकि शारीरिक तथा मानसिक रूप से कोई अयोग्य नारी भिक्षुणी न बन सके।
हमें ग्रन्थों एवं आभिलेखिक साक्ष्यों से भिक्षुणी के अनेक पर्यायवाची शब्द प्राप्त होते हैं। महासांधिकों के भिक्षुणी विनय में काली नामक भिक्षुणी को "श्रमणिका" कहा गया है। अमरावती से प्राप्त बौद्ध अभिलेखों (Amaravati Buddhist Sculpture Inscriptions) में भी कुछ भिक्षुणियोंको "श्रमणिका" कहा गया है। इसी प्रकार कन्हेरी (Kanheri Buddhist Cave Inscription) तथा कूदा (Kuda Buddhist Cave Inscription) से प्राप्त बौद्ध अभिलेखों में उन्हें पवतिका तथा नासिक बौद्ध गुफा अभिलेख (Nasik Buddhist cave Inscription) में 'पवयिता" कहा गया है। अमरावती से प्राप्त अन्य अभिलेखों में भिक्षुणी के लिए "पवजितिका' शब्द का प्रयोग किया गया है।' अमरावती से ही प्राप्त अनेक बौद्ध अभिलेखों में भिक्षुणी के लिए "अन्तेवासिनी' शब्द का प्रयोग किया गया है।
१. महावग्ग, पृ० १४१. २. द्रष्टव्य-इसी ग्रन्थ का प्रथम अध्याय । ३. "काली नाम श्रमणिका" -भिक्षणी विनय ९१५८. 4. List of Brahmi Inscriptions, 1242, 1258. 5. Ibid, 1006, 1020. 6. Ibid, 1660. 7. Ibid, 1128. 8. Ibid, 1240, 1262. 9. Ibid, 1224, 1237, 1246, 1236, 1295 आदि ।
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