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________________ जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या : ९७ भिक्षुणी पोट्टिला के भक्तप्रत्याख्यान (आहार आदि का त्याग करके) द्वारा मृत्यु-प्राप्त करने का उल्लेख है। उसने एक मास की सल्लेखना अर्थात् ६० भक्त का अनशन करके अपना शरीर त्यागा था। इसी प्रकार भिक्षणी द्रौपदी द्वारा एक मास की सल्लेखना के पश्चात शरीर त्यागने का उल्लेख है ।२ जैन अभिलेखों में भी भिक्षुणियों के समाधिमरण के उल्लेख प्राप्त होते हैं। श्रवणबेलगोल से प्राप्त एक जैन अभिलेख में साध्वी गन्ती३ तथा साध्वी कालब्बे के समाधिमरण का उल्लेख है। इसी प्रकार चन्द्रगिरि पर्वत से प्राप्त एक जैन अभिलेख में साध्वी राजीमती" के समाधिमरण का उल्लेख है। मृत्यु के बाद भिक्षुणियों के कौन-कौन से मृतक संस्कार होते थेइसका अलग से कहीं उल्लेख प्राप्त नहीं होता । बृहत्कल्पभाष्य में भिक्षुओं के मृतक-संस्कार के सम्बन्ध में नियम दिये गए हैं-सामान्य रूप से वे ही नियम भिक्षुणियों के सम्बन्ध में लागू होते रहे होंगे। मृतक शरीर को एक कपड़े से ढंक दिया जाता था तथा मजबूत बाँसों की पट्टियों पर श्मशान-स्थल को ले जाया जाता था। शव को ढंकने के लिए सफेद कपड़ों की तीन पटियाँ लगती थीं-एक शव के नीचे बिछाने के लिए, दूसरा शव को ऊपर से ढंकने के लिए तथा तीसरा बाँस की पट्टयों से शव को बाँधने के लिए। मलीन या रंग-बिरंगे कपड़े से शव को ढंकना निषिद्ध था। मृत्यु हो जाने पर शव को तुरन्त बाहर ले जाने का विधान था, परन्तु यदि हिमवर्षा हो रही हो, चोरों और जंगली जानवरों का डर हो, नगर-द्वार बन्द हो गया हो, मृतक अत्यन्त विख्यात हो, मृत्यु के पहले यदि उसने मासादिक उपवास किया हो तथा राजा अपने सेवकों के साथ नगर में आ रहा हो, तो शव को कुछ समय तक रोक देने का विधान था। श्मशान-भमि में शव का सिर ग्राम या नगर की तरफ रखा जाता था। श्मशान में शव को लिटाकर उसके ऊपर घास आदि को समान रूप से फैला दिया जाता था। इसके पूर्व मुखवस्त्रिका, रजोहरण, पात्र आदि १. 'मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाई'. -ज्ञाताधर्मकथा, १/१४. २. वही, १/१६. ३. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, पृ० २८८. ... .. . . ४. वही, प्रथम भाग, पृ० ३७९. ५, वही, प्रथम भाग, पृ० ३१७. ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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