________________
९८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ वहीं अलग रख दिये जाते थे। शव में आग नहीं लगाई जाती थी, अपितु सियारों, पिशाचों तथा यक्षों (व्यन्तर) के लिए छोड़ दिया जाता था। वहाँ से लौटने के पश्चात गरु के समक्ष कायोत्सर्ग करने तथा अजितनाथ एवं शान्तिनाथ की स्तुति करने का विधान था ।' बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या ... जैन भिक्षुणियों के समान बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या का कोई क्रमबद्ध वर्णन नहीं प्राप्त होता। जैन भिक्षुणियों की प्रतिलेखना, आलोचना, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग आदि दिनचर्या के आवश्यक कृत्य थे, बौद्ध भिक्षुणियों के सन्दर्भ में इस प्रकार के किसी आवश्यक कृत्य का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। फिर भी यह अनुमान करना अनुचित नहीं कि बौद्ध भिक्षुणियों को भी जैन भिक्षुणियों के समान ही अपनी उपाध्याया या प्रवर्तिनी की वन्दना आदि करना अनिवार्य रहा होगा। भिक्खुनी पाचित्तिय के अनुसार उन्हें प्रति पन्द्रहवें दिन भिक्षुसंघ के पास उपोसथ की तिथि पूछने तथा उपदेश सुनने जाना पड़ता था। इसके अतिरिक्त भिक्षा-चर्या भी दिन का एक आवश्यक कृत्य था। भिक्षुणी को विकाल (मध्याह्न के बाद) में भोजन करना निषिद्ध था। अतः उसे भिक्षा की गवेषणा मध्याह्न के पूर्व ही करनी पड़ती थी। इसके अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुणियों के अध्ययन-अध्यापन तथा ध्यान करने के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। परन्तु इसके लिए दिन तथा रात्रि का कौन समय निश्चित था, इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता। अध्ययन
बौद्ध भिक्षुणियाँ अत्यन्त अध्ययनशील होती थीं। साहित्यिक एवं आभिलेखिक साक्ष्यों से उनकी विद्वत्ता के अनेक प्रमाण प्राप्त होते हैं। भिक्षुणी क्षेमा का कोशल-नरेश प्रसेनजित से दार्शनिक वार्तालाप हुआ था। उसने प्रसेनजित के गूढ़ दार्शनिक प्रश्नों का बहुत ही विद्वत्तापूर्ण उत्तर दिया था। क्षेमा को पण्डिता तथा बहश्रुता कहा गया है। इसी प्रकार भिक्षुणी धम्मदिन्ना का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसने श्रावक विशाख के गम्भीर प्रश्नों का सहजतापूर्वक उत्तर दिया था। धम्मदिन्ना
१. बृहत्कल्पभाष्य, भाग पंचम, ५५००-५५५२. २. “पण्डिता वियत्ता मेधाविनी बहुस्सुता चित्तकथा कल्याणपटिभाना"
-संयुत्त निकाय, ४१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org