________________
९६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
दिगम्बर भिक्षु-भिक्षुणियों के स्वाध्याय का उपयुक्त समय श्वेताम्बर भिक्षु-भिक्षुणियों के समान ही था। दिन का पूर्वाह्न, अपराह्न तथा रात्रि का पूर्वाह्न-अपराह्न-ये चार प्रहर स्वाध्याय के लिए उपयुक्त माने गये थे।' निम्न परिस्थितियों में स्वाध्याय करने से निषेध किया गया था यथा-उल्कापात के समय, मेघ गर्जन के समय, चन्द्र ग्रहण और सूर्यग्रहण के समय, धूमकेतु का उदय हो जाने पर तथा भूकम्प आदि के आ जाने पर।
भिक्षुणियाँ ज्ञानाभ्यास में सदा तत्पर रहती थीं। इसी प्रकार वे तप, विनय और संयम से सम्बन्धित नियमों का सम्यकपेण पालन करती थीं।' जिस प्रकार श्वेताम्बर भिक्षुणियों को १२ वाँ अंग दृष्टिवाद पढ़ना निषिद्ध था. उस प्रकार दिगम्बर भिक्षुणियों के लिए कौन से ग्रन्थ निषिद्ध थेइसका उल्लेख नहीं प्राप्त होता । उन्हें यह निर्देश अवश्य दिया गया है कि वे गणधर, प्रत्येक बुद्ध, श्रुतकेवली तथा अभिन्नदशपूर्वधर द्वारा कथित सूत्रों को अस्वाध्याय काल में न पढ़ें। यद्यपि ऐसे समय में भी उन्हें आराधना, नियुक्ति, मरण-विभक्ति, स्तुतिप्रत्याख्यान, आवश्यक तथा धर्मकथा आदि पढ़ने की अनुमति दी गई थी।
दिगम्बर भिक्षुणियों के ध्यान, तप आदि का विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं होता परन्तु यह विश्वास किया जा सकता है कि दिगम्बर भिक्षुणियाँ भी श्वेताम्बर भिक्षुणियों के समान ध्यान तथा तप में सदा तत्पर रहती रही होंगी। जैन भिक्षुणी के मतक-संस्कार
सल्लेखना-जैन ग्रन्थों में सल्लेखना आत्मा को शुद्ध करने वाला अन्तिम व्रत माना गया है । मृत्यु के निकट आ जाने पर अथवा आचार आदि के पालन में शिथिलता होने पर आहार आदि का त्याग करके प्राणों का उत्सर्ग करना ही सल्लेखना है। सल्लेखना में उपवास से शरीर को तथा ज्ञानभावना द्वारा कषायों को कृश किया जाता है । ज्ञाताधर्मकथा में
१. मूलाचार, ५/७३. २. वही, ५/७७-७९. ३. वही, ४/१८९. ४. वही, ५/८०-८१. ५. वही, ५/८०-८२.
· Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org