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जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या : ९५
... ध्यान के अतिरिक्त जैन भिक्षुणियों के जीवन में तप का अत्यधिक महत्त्व था। तप से समस्त कर्मों का क्षय होता है तथा आत्मा परिशुद्ध होती है । तप को वह विधि बताया गया है, जिससे बद्ध कर्मों का क्षय करके आत्मा व्यवदान-विशुद्धि को प्राप्त होती है।' अन्तकृतदशांग में भिक्षुणी पद्मावती द्वारा ग्यारह अंगों के अध्ययन के साथ ही उपवास, बेला, तेला, चोला, पँचोला, पन्द्रह-पन्द्रह दिन की और महीने महीने तक के विविध प्रकार की तपस्या करने का उल्लेख है। इसी प्रकार अन्तकृतदशांग से ही ज्ञात होता है कि काली ने रत्नावती तप, सुकाली ने कनकावली तप, महाकाली ने लघुसिंह निष्क्रीडित तप, कृष्णा ने महासिंह-निष्क्रीडित तप, सुकृष्णा ने सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिमा तप, महाकृष्णो ने लघुसर्वतो. भद्र तप, वीरकृष्णा ने महासर्वतोभद्र तप, रामकृष्णा ने भद्रोतरप्रतिमा तप, पितृसेन कृष्णा ने मुक्तावली तप तथा महासेन कृष्णा ने आयम्बिलवर्द्धमान नामक तप किया था। इन तपों में विविध संख्याओं में उपवास आदि करने का विधान था, जिसका विस्तृत वर्णन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। ऐसा वर्णन प्राप्त होता है कि रत्नावली तप करने के पश्चात् भिक्षुणी काली का शरीर मांस और रक्त से रहित हो गया था। उनके शरीर की धमनियाँ प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी थी। शरीर इतना कृश हो गया था कि उठते-बैठते शरीर की हड्डियों से आवाज उत्पन्न होती थी। दिगम्बर भिक्षुणियों की दिनचर्या
दिगम्बर भिक्षुणियों की दिनचर्या का कोई क्रमबद्ध वर्णन नहीं प्राप्त होता । अतः इनकी भी दिनचर्या श्वेताम्बर भिक्षुणियों के समान रही होगी-यह विश्वास किया जा सकता है।
१. "तवेणं भन्ते ! जोवे किं जणयह ? तवणं वोदाणं जणयह"
-उत्तराध्ययन, २९/२८. २. अन्तकृतदशांग, वर्ग ५, अध्याय, १. ३. वही , वर्ग ८, अध्याय, १-१०. ४. तएणं सा काली मज्जा तेणं ओरालेणं जाव धमणिसंतया जाया या वि
होत्था । से जहा नामए इंगालसगडी वा जाव सुहुयहुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णा, तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव उवसोभेमाणी चिट्ठइ ॥ ..
- वही, वर्ग ८, अध्याय,.१.
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