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९४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ भिक्षु को ही उपदेशक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके लिए "गणिनवाचक" तथा "वाचक" के विशेषण प्रयुक्त किये गये हैं। परन्तु किसी भी अभिलेख में भिक्षुणी के लिए इन विशेषणों का प्रयोग नहीं हुआ है। अनध्याय काल - निम्न परिस्थितियों में भिक्षु-भिक्षुणियों को स्वाध्याय करना निषिद्ध था । यथा-आकाश में उल्कापात होने पर, तेज गर्जना होने पर, तेज आँधी आने पर, अत्यधिक ओस पड़ने पर, आकाश में बिजली आदि चमकने पर, चन्द्र-ग्रहण और सूर्य-ग्रहण होने पर, राजा अथवा राज्याधिकारी की मृत्यु होने पर, दो राज्यों के मध्य युद्ध छिड़ने पर आदि । इस काल में अध्ययन निषिद्ध था।' . इसके अतिरिक्त चार महाप्रतिपदाओं में भिक्ष-भिक्षुणियों को स्वाध्याय करना निषिद्ध था । ये प्रतिपदाएँ निम्न थीं। (१) श्रावण कृष्णा प्रतिपदा. (२) कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा, (३) मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा, (४) वैसाख कृष्णा प्रतिपदा । ___ उपयुक्त अनध्याय काल के अतिरिक्त यदि भिक्षुणी का शरीर रोग से पीड़ित हो तो, उसे अध्ययन से विरत रहने को कहा गया था। भिक्षु को अनध्याय काल (व्यतिकृष्ट काल) में अध्ययन करना सर्वथा निषिद्ध था, यद्यपि नवदीक्षिता भिक्षुणी ऐसे समय में भी किसी भिक्षु की अनुमति से अध्ययन कर सकती थी। ताकि याद किये हुए सूत्र विस्मृत न हों। ___ वैदिक परम्परा के धर्मसूत्रों तथा स्मृतियों में भी अनध्याय काल को विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। पक्ष की पहली, आठवीं, चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं (पूर्णमासी एवं अमावस्या) नामक तिथियों में वेद का अध्ययन करना निषिद्ध था। याज्ञवल्क्य ने ३७ तात्कालिक अनध्यायों का वर्णन किया है यथा-कुत्ता भौंकने या सियार, गदहा, उल्ल के बोलते रहने पर तथा अद्ध रात्रि में आदि। इसी प्रकार बिजली के चमकने, वज्रपात या वर्षा होने पर वेदाध्ययन निषिद्ध था।"
१. स्थानांग, १०/७१४. २. स्थानांग, ४/२८५; निशीथसूत्र, १८/१४. ३. निशीथसूत्र, १८/१८. ४. व्यवहार सूत्र, ७/१६; निशीथसूत्र, १८/१६. .. .. ५. धर्मशास्त्र का इतिहास, प्रथम भाग, पृ० २५८-२६१. . . .
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