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________________ जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या : ९३ (३) आवृत्ति करना (परियट्टणा), (४) मनन करना (अणुप्पेहा), (५) धार्मिक कथाओं को कहना (धम्मकहा)।' इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन भिक्षु-भिक्षुणी ग्रन्थों में उल्लिखित श्लोकों को सिर्फ याद ही नहीं करते थे, अपितु उनमें निहित मूल भावना को समझने की कोशिश करते थे। एक ग्रन्थ को बार-बार पढ़कर तथा अस्पष्ट विषयों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछकर उसके तत्त्व को पूरी तरह आत्मसात किया जाता था। अध्ययन का उद्देश्य अध्ययन का उद्देश्य उच्च था तथा इससे किसी भौतिक सुख को प्राप्त करने की आशा नहीं की जाती थी। इसका मुख्य उद्देश्य था ज्ञानप्राप्ति (णाणट्ठयाए) । ग्रन्थों के अध्ययन से दर्शन तथा चारित्र की शुद्धि होती थी (दसणट्रयाए चरित्तट्रयाए)। साथ ही यह विश्वास किया गया था कि अध्ययन से दूसरों को मिथ्या अभिनिवेश से मुक्त करने में (वुग्गहविमोयणठ्याए) तथा स्वयं भी यथार्थ तत्त्व को समझने में सरलता होती है (अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्ट)। अध्यापन करना ___ अन्तकृतदशांग तथा ज्ञाताधर्मकथा से स्पष्ट होता है कि भिक्षुणियाँ अध्यापन कार्य भी करती थीं। दीक्षा प्रदान करने वाली प्रतिनी ही पढ़ाने का उत्तरदायित्व वहन करती थी । योग्य भिक्षुणियाँ अपनी शिष्याओं तथा श्राविकाओं को उपदेश प्रदान करती थीं। परन्तु भिक्षुणी किसी भिक्षु को उपदेश नहीं दे सकती थी। सर्वथा योग्य होते हुए भी उसे भिक्षु को पढ़ाने का अधिकार नहीं था। उत्तराध्ययन में भिक्षुणी राजीमती द्वारा भिक्षु रथनेमि को उपदेश देने का जो उदाहरण उपलब्ध होता है, वह एक अपवाद ही है। रथनेमि के भौतिक वासनापूर्ति के प्रस्ताव को अस्वीकार कर राजीमती ने अत्यन्त कठोर शब्दों में फटकारते हुए उन्हें प्रतिबोधित किया था। इसी प्रकार ब्राह्मी और सुन्दरी ने बाहुबली को प्रतिबोधित किया था । इनके अतिरिक्त अन्य किसी साक्ष्य (साहित्यिक अथवा आभिलेखिक) में किसी भिक्षुणी का भिक्षु के उपदेशक के रूप में उल्लेख नहीं मिलता। अभिलेखों में भी सर्वत्र १. स्थानांग, ५/४६५; उत्तराध्ययन, ३०/३४. २. स्थानांग, ५/४६८. ३. उत्तराध्यययन, २२वाँ अध्याय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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