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________________ जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या : ९१ निर्देश दिया गया था (बीयं झाणं झियायई)। स्थानांग के अनुसार ध्यान के चार प्रकार हैं-आतं, रौद्र, धर्म तथा शुक्ल; आर्त तथा रौद्र अप्रशस्त ध्यान और धर्म तथा शुक्ल प्रशस्त ध्यान माने गए थे। प्रथम दो ध्यान दुःख या संसार के हेतु तथा अन्तिम दो ध्यान मोक्ष के हेतु कहे गए हैं। धर्म ध्यान से जीव का रागभाव मन्द होता है तथा वह आत्मचिन्तन की ओर प्रवृत्त होता है। आत्मा की अत्यन्त विशुद्धावस्था को शुक्ल ध्यान कहा गया है। यह ध्यान धर्म ध्यान के बाद प्रारम्भ होता है। इस ध्यान से मन की एकाग्रता के कारण आत्मा में परम विशुद्धता आती है और कषायों, रागभावों तथा कर्मों का सर्वथा परिहार हो जाता है। भिक्खायरिय (भिक्षा-गवेषणा) ... भिक्षु-भिक्षुणी दोनों के लिए आहार सम्बन्धी अनेक नियमों का प्रतिपादन किया गया था । सज्झायं (स्वाध्याय) जैन भिक्षणी के जीवन में स्वाध्याय का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। दिन और रात का प्रथम तथा अन्तिम प्रहर स्वाध्याय के लिए नियत समय था। इस प्रकार दिवस और रात्रि के आठ प्रहर में चार प्रहर (१२ घण्ट) स्वाध्याय के लिए ही समर्पित थे। आगम साहित्य में ऐसी अनेक भिक्षणियों का उल्लेख मिलता है, जो आगम गन्थों का गहनता से अध्ययन करती थीं तथा उसमें पूर्णता प्राप्त करती थीं। अन्तकृतदशांग में यक्षिणो आर्या के सान्निध्य में पद्मावती' आदि तथा चन्दना आर्या के सान्निध्य में काली आदि को ११ अंगों का अध्ययन करने वाली बताया गया है । इसी प्रकार ज्ञाताधर्मकथा में सुव्रता आर्या के सान्निध्य में द्रोपदी को ११ अंगों का अध्ययन करने वाली बताया गया है। बौद्ध ग्रन्थ थेरीगाथा की अट्ठकथा (परमत्थदोपनी) से भी कुछ विदुषी जैन भिक्षुणियों का उल्लेख प्राप्त होता है। थेरी गाथा में भद्रा १. स्थानांग, ४/२४७. २. उत्तराध्ययन, ३०/३५; मूलाचार, ५/१९७. ३. द्रष्टव्य-द्वितीय अध्याय । ४. अन्तकृतदशांग, वर्ग ५. ५. वही, वर्ग ८. ६. ज्ञाताधर्मकथा, १/१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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