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जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या : ८७ वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग तथा प्रत्याख्यान-ये षट् आवश्यक कृत्य थे। इस प्रकार प्रत्येक जैन भिक्षुणी के सामायिक, स्तवन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान और प्रतिलेखन, आलोचना ,ध्यान, स्वाध्याय तथा भिक्षा गवेषणा दिनचर्या के प्रमुख कृत्य थे। षडावश्यक . (१) सामायिक-चित्त में समताभाव का आना ही सामायिक है। लाभ-हानि, संयोग-वियोग, सुख-दुःख, भूख-प्यास आदि अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में राग-द्वेष रहित होना ही सामायिक कहलाता है। .. (२) स्तवन-चौबीस तीर्थंकरों की श्रद्धापूर्वक स्तुति करना स्वतन है।
(३) वन्दन-इसी प्रकार मन, वचन एवं शरीर से शुद्ध होकर अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, गुरु आदि को विधिपूर्वक नमन करना वन्दन है। .. (४) प्रतिक्रमण-दैनिक क्रियाओं में प्रमाद आदि के कारण दोष लगने पर उनकी निवृत्ति के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक था। प्रतिक्रमण से जीव स्वीकृत व्रतों के छिद्रों को बन्द करता है तथा विशुद्ध चारित्र को प्राप्त करते हुए सम्यक् समाधिस्थ होकर विचरण करता है । स्थानांग में प्रतिक्रमण के छः भेद बताए गये हैं ।
(१) उच्चारपडिक्कमण-मल-त्याग करने के बाद अपने स्थान पर आकर ईर्या-पथ तथा मल-विसर्जन सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण करना ।
(२) पासवणपडिक्कमण-मूत्र-त्याग करने के बाद ईर्या-पथ तथा मूत्रविसर्जन सम्बन्धी दोषों का प्रतिक्रमण करना। ___ (३) इत्तरिय-अल्पकालिक अथवा दिन या रात्रि में हुए दोषों का प्रतिक्रमण करना।
(४) आवकहिय-सल्लेखना करते समय आजीवन के लिए ग्रहित महाव्रतों के दोषों का प्रतिक्रमण करना। १. सामायिके स्तवे भक्त्या वन्दनायां प्रतिक्रमे । प्रत्याख्याने तनूत्सर्गे वर्तमानस्य संवरः ।
योगसारप्राभृत, ५/४६. २. उत्तराध्ययन, २९/१२. ३. स्थानांग, ६/५३८.
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