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चतुर्थ अध्याय जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों की दिनचर्या जैन भिक्षुणियों की दिनचर्या
उत्तराध्ययन' में जैन भिक्षु की दिनचर्या का विस्तार से वर्णन किया गया है । इसी आधार पर भिक्षुणियों को भी दिनचर्या का अनुमान किया जा सकता है।
दिन और रात को चार भागों में विभाजित कर उनका कार्यक्रम निश्चित किया गया था और उसी के अनुसार उन्हें जीवन-निर्वाह करने का निर्देश दिया गया था । दिन के चार भागों में प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में भिक्षा-गवेषणा एवं भोजन और चतुर्थ प्रहर में पुनः स्वाध्याय करने का विधान था ।२ दिन के समान रात्रि के भी चार भाग किये गये थे। रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में शयन तथा चतुर्थ प्रहर में पुनः स्वाध्याय करने का विधान था।
भिक्षुणी को यह निर्देश दिया गया था कि वह सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में भाण्ड (पात्र) का प्रतिलेखन कर गुरु की वन्दना करे। फिर गुरु से यह पूछे कि “अब मुझे क्या करना चाहिए (कि कायव्वं मए इहं") किसी कार्य में नियुक्त किए जाने पर उसे अग्लान भाव से सम्पन्न करने का निर्देश दिया गया था। कोई कार्य न रहने पर उसे स्वाध्याय करने का विधान था । द्वितीय तथा तृतीय प्रहर क्रमशः ध्यान तथा भिक्षा-वृत्ति के लिए निश्चित थे। चतुर्थ प्रहर में उपकरणों के प्रतिलेखन के पश्चात् उसे पुनः स्वाध्याय करना होता था। इसके अतिरिक्त षट् आवश्यक कृत्यों का भी सम्पादन करना होता था। सामायिक, स्तवन १. उत्तराध्ययन, २६ वा अध्याय । २. पढम पोरिसिं सज्झायं, बीयं झाणं शियायई ।
. तइयाऐ भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीए सज्झायं ॥ -वही, २६/१२. ३. वही, २६/१८. ४. वही, २६/८-१०.
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