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________________ सिद्धसेन दिवाकर की कृतियाँ ६१ सकता। अत: उपर्युक्त साक्ष्यों के आधार पर कल्याणमन्दिरस्तोत्र के कर्ता कुमुदचन्द्र, सिद्धसेन के दीक्षा नाम कुमुदचन्द्र से सर्वथा भिन्न सिद्ध होते हैं। कल्याणमन्दिरस्तोत्र एवं भक्तामरस्तोत्र के जर्मन अनुवाद में प्रो०जैकोबी ने दोनों रचनाओं की कतिपय साम्यता के आधार पर यह सिद्ध किया है कि कुमुदचन्द्रकृत कल्याणमन्दिरस्तोत्र, मानतुंगकृत भक्तामर स्तोत्र की अनुकृति है। १३८ कल्याणमन्दिर की पदावली, छंद, शैली कल्पनाएँ एवं तथ्यनिरूपण प्रणाली भक्तामरस्तोत्र के ही समान है। भक्तामरस्तोत्र में मूलरूप से ४३ श्लोक हैं, ३९वाँ श्लोक बाद में उसमें जोड़ा गया है। कल्याणमन्दिर में ४४ श्लोक हैं। जिस प्रकार भक्तामरस्तोत्र के अन्त में उसके कर्ता मानतुंग का नाम आता है उसी प्रकार कल्याणमन्दिर में भी उसके अन्तिम श्लोक में कुमुदचन्द्र का नाम आता है। इन्हीं समानताओं के आधार पर प्रो० हर्मन जैकोबी ने कल्याणमन्दिर को, भक्तामरस्तोत्र की अनुकृति माना है। १३९ प्रोजैकोबी का उक्त मत जो अधिकांश अर्थों में समीचीन लगता है, क्योंकि निश्चित रूप से दोनों ग्रन्थों की शैली एवं तथ्य निरूपण प्रणाली में काफी साम्य है।१४० अत: सिद्धसेन दिवाकर ही कुमुदचन्द्र हैं, यह मानने के लिए कोई तर्क नहीं रह जाता। मानतुंग का समय डॉ० हीरालाल जैन१४१, प्रो०ए०वी०कीथ,१४२ डॉ०नेमिचन्द्र शास्त्री,१४३ प्रो०जैकोबी१४४ आदि विद्वानों ने वि०की छठी-सातवीं शताब्दी माना है। अत: यदि कुमुदचन्द्र ही सिद्धसेन दिवकार हैं, ऐसा माना जाय तो कल्याणमन्दिर के भक्तामर के बाद की रचना होने एवं सिद्धसेन का समय पाँचवी शताब्दी होने से, यह तथ्य निरापद नहीं रह जाता। कल्याणमन्दिर सिद्धसेन की कृति नहीं है, इसे स्पष्ट करने के लिए प्रोजैकोबी ने दो दलीलें दी हैं, पहली यह कि यदि यह सिद्धसेन द्वारा रचित स्तोत्र होता, तो जैसे वीर स्तुतियों के अन्त में सिद्धसेन नाम आता है वैसे ही कल्याणमन्दिर के अन्त में भी वह नाम आता। दूसरी यह कि इस पर कोई पुरानी टीका नहीं है। १४५ इसी आशय का उल्लेख पण्डित सुखलाल जी संघवी ने अपने सन्मति तर्क की प्रस्तावना में करते हुए कहा है कि सिद्धसेन दिवाकर का नाम मूल में कुमुदचन्द्र नहीं था, होता तो दिवाकर विशेषण की तरह यह श्रुतिप्रिय नाम भी किसी प्राचीन ग्रन्थ में सिद्धसेन की निश्चित कृति अथवा उसके उद्धृत वाक्यों के साथ जरुर उल्लिखित मिलता। प्रभावक चरित से पहले किसी भी ग्रन्थ में इसका उल्लेख नहीं है। इसलिए हमें ऐसा लगता है कि दिवाकर का कुमुदचन्द्र नाम मूल में नहीं था।१४६ ___ वस्तुत: यदि कल्याणमन्दिरस्तोत्र सिद्धसेन की रचना होती तो पाँचवी शताब्दी से लेकर १४वीं शताब्दी तक के बीच के किसी न किसी आचार्य ने ऐसा उल्लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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