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________________ सिद्धसेन दिवाकर की कृतियाँ नामों से अधिक प्रसिद्ध है। जिनमें सन्मति की जगह सम्मतिपद अशुद्ध है और वह प्राकृत ‘सम्मइ' पद का गलत संस्कृत रूपान्तर है। पण्डित सुखलाल जी और पण्डित बेचरदास जी ने सन्मति-प्रकरण की प्रस्तावना में इस गलती पर यथेष्ट प्रकाश डाला है, और यह बतलाया है कि ‘सन्मति' भगवान महावीर का ही एक अन्य नाम है जो दिगम्बर परम्परा में प्राचीनकाल से प्रसिद्ध रहा है। यह तथ्य धनञ्जय की नाममाला में भी उल्लिखित है।६ सन्मति नाम, ग्रन्थ के नाम के साथ योजित होने से महावीर के सिद्धान्तों के साथ जहाँ ग्रन्थ के सम्बन्ध को दर्शाता है, वहाँ श्लेषरूप से श्रेष्ठ मति अर्थ का सूचन करना हुआ ग्रन्थकर्ता की योग्यता को भी व्यक्त करता है और इसलिए औचित्य की दृष्टि से सम्मति के स्थान पर सन्मति नाम ही उचित प्रतीत होता है। तदनुसार ही पण्डित सुखलालजी एवं पं०बेचरदास जी ने ग्रन्थ का 'सन्मति प्रकरण' नाम दिया है। उन्होंने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में इस बात को भी स्वीकार किया है कि सम्पूर्ण सन्मति ग्रन्थ सत्र कहा जाता है। भावनगर की श्वेताम्बर सभा से वि० सं० १९६५ में प्रकाशित मूल प्रति में भी “श्री संमतिसूत्रं समाप्तमिति भद्रम्' वाक्य के द्वारा इसे सूत्र नाम के साथ प्रकट किया गया है। वृत्ति एवं टीकाएँ सन्मतिसूत्र पर चार वृत्तियाँ लिखी गई हैं- (१) मल्लवादी (वि०सं०४१४) द्वारा रचित-ग्रन्थाग्र ७०० श्लोक। हरिभद्र की अनेकान्तजयपताका में इस वृत्ति के एक उद्धरण का सूचन है। (अनुपलब्ध)। (२) राजगचछ के प्रद्युम्नसूरि के शिष्य अभयदेव सूरि (११वीं शती) द्वारा रचित 'तत्त्वबोधविधायिनी' नामक वृत्ति। ग्रन्थान-२५०००श्लोक। इस वृत्ति का दूसरा नाम 'वादमहार्णव' भी है। संस्कृत भाषा में गद्यरूप में लिखित इस वृत्ति के श्लोक बिखरे हुए हैं। गद्यशैली प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र से मिलती-जुलती है। यह इसकी सबसे बड़ी वृत्ति है। (प्रकाशित संवत्, १९६७)। (३) दिगम्बर आचार्य सन्मति द्वारा रचित 'सम्मतिविवरण' नामक एक वृत्ति का उल्लेख मिलता है। वादिराज ने अपने पार्श्वनाथचरित (ई०स०९४७) में इस वृत्ति का उल्लेख किया है किन्तु यह वृत्ति अनुपलब्ध है। ___ (४) अज्ञात लेखक द्वारा रचित एक वृत्ति११ जिसका सूचन बृहटिप्पाणिका नं०३५८ में मिलता है जो जैनसाहित्य संशोधक भाग १,२ पूना से १९२५ में प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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