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________________ सिद्धसेन दिवाकर और उनका समय पुरातन-जैनवाक्य-सूची (पृष्ठ-१५१) में सन्दर्भित किए हैं, वे ११वी १२वीं शती के हैं। अत: उनका मत किसी प्रकार समीचीन नहीं लगता। पण्डित जुगल किशोर मुख्तार ने पण्डित सुखलालजी पर सिद्धसेन के समय के सन्दर्भ में अनिश्चितता का आरोप लगाते हुए 'पुरातन-जैनवाक्य-सूची' की प्रस्तावना में कहा है कि 'पण्डितजी की स्थिति सिद्धसेन के समय-सम्बन्ध में बराबर डंवाडोल चली जाती है। आप प्रस्तुत सिद्धसेन का समय कभी विक्रम की छठी शताब्दी से पूर्व पांचवीं शताब्दी० बतलाते हैं, कभी छठी शताब्दी का भी उत्तरवर्ती १ कह डालते हैं, कभी संदिग्ध रूप में छठी या सातवीं शताब्दी निर्दिष्ट करते हैं और कभी पांचवी तथा छठी शताब्दी का३ मध्यवर्ती काल प्रतिपादन करते हैं। परन्तु पं० जुगल किशोरजी ने इस तथ्य पर विचार करना आवश्यक नहीं समझा कि सुखलालजी की सिद्धसेन के समय विषयक जो डांवाडोल स्थिति है, उसका कारण क्या है? कोई भी रचनाकार जब किसी एक व्यक्ति के विषय में कुछ लिखता है तो उससे सम्बन्धित नये-नये प्रमाण जैसे-जैसे मिलते जाते हैं वैसे-वैसे लेखक की मान्यताओं में परिवर्तन होता चला जाता है। पण्डित सुखलालजी ने वि०सं०१९८० में सन्मति प्रकरण के गुजराती संस्करण की प्रस्तावना लिखी थी तो उस समय उन्होंने सिद्धसेन का समय विक्रम की पाँचवीं शताब्दी माना था। कुछ अन्य प्रमाणों के प्राप्त होने पर उन्हें अपनी मान्यता में परिवर्तन करना पड़ा और सं० १९९८ में 'ज्ञानबिन्दु प्रकरण' ७५ के ज्ञानबिन्दु परिचय में उन्होंने सिद्धसेन के समय को विक्रम की छठी शताब्दी का उत्तरवर्ती मान लिया। किन्तु पण्डित मुख्तारजी का यह कथन तो पूर्णतः असत्य है कि पण्डित सुखलालजी ने 'भारतीय विद्या' ७६ में प्रकाशित अपने 'श्री सिद्धसेन दिवाकरना समयनो प्रश्न' नामक लेखक में सिद्धसेन को छठी या सातवीं शताब्दी का निर्दिष्ट करते हैं। पण्डित मुख्तारजी का यह कथन पूर्वाग्रह युक्त विचार का प्रतिफल है क्योंकि पं० सुखलालजी ने उक्त लेख में स्पष्ट लिखा है कि “सिद्धसेन दिवाकर नो समय जे पांचवीं शताब्दी धरवामां आवेलो तो वधारे संगत लागे छे” हाँ उन्होंने यह अवश्य लिखा है कि बौद्धग्रन्थों के आधार पर मुझे एक बार ऐसा लगा था कि सिद्धसेन का समय वि० की पांचवीं शताब्दी के बदले सातवीं शताब्दी होना चाहिए परन्तु उसके बाद बौद्ध न्याय के पुष्ट प्रमाणों के आधार पर अवलोकन किया तो लगा कि मेरी पूर्व मान्यता अर्थात् सिद्धसेन पांचवीं शताब्दी के हैं, अधिक संगत है' । ७७ अतः सिद्धसेन के समय के विषय में प्राप्त अब तक के प्रमाणों की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे विक्रम की पाँचवीं शताब्दी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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