________________
१८
सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य हैं। किसी भी आधार पर उनका समय पांचवीं शताब्दी के बाद नहीं लाया जा सकता। इस मत का समर्थन पण्डित दलसुखभाई मालवणिया ८, सरलाक्राउज़े,७९ एच०आर० कापड़िया, ० पी०एन० दवे'' आदि आधुनिक विद्वानों ने भी किया है।
सन्दर्भ :
२.
जगत्प्रसिद्धबोधस्य वृषभस्येव निस्तुषाः ।
१/३० ।
बोधयन्ति सतां बुद्धिं सिद्धसेनस्य सूक्तयः । । - हरिवंश पुराण, संपा० - पं० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, संस्करण प्रवादिकरियूथानां केसरी नयकेसरः । सिद्धसेनकविर्जीयाद्विकल्पनखराङ्कुरः । । - जिनसेन, आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, भाग -१, १९९३, हेमचन्द्राचार्य, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, पारमर्षस्वाध्याय ग्रन्थसंग्रह, श्रीजैनग्रन्थ प्रकाशक सभा, ग्रन्थांक २८, भावनगर, वि०सं० १९९६, श्लोक6-३ । जैनग्रन्थावली, पृष्ठ ५४, ७५, ७९, ९४, १२७, १३८, २७३, २७५, २७७, २८१, २८९, २९२।
१/३९-४२।
६. आयरिय सिद्धसेणेण सम्मइए पइट्ठिअजसेणं ।
३.
४.
५.
आयरिय सिद्धसेणेण सम्मईए पइट्ठिअजसेणं ।
दूसमणिसा-दिवागर कप्पंतणओ तदक्खेणं ।। - हरिभद्र, पंचवस्तुक गाथा१०४८, श्रेष्ठि देवचन्द्र लाल भाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था- वि० सं० १९८३ बम्बई, १०४८ |
७.
दूसमणिसा-दिवागर-कप्पतणओ तदक्खेणं ।। - पंचवस्तुक, १०४८ । इति मन्वान आचार्यो दुषमाऽरसमाश्यामासमयोद्भूतसमस्त जनाहार्दसंतम सविध्वंसकत्वेनावाप्तयथार्थाभिधानः सिद्धसेन दिवाकरः पदुपायभूतसम्मत्यारव्यप्रकरणकरणे प्रवर्तमान स्तवाभिधायिकां गाथागाह ।
indiandio
संमतितर्क - प्रकरणम्, श्री अभयदेवसूरि निर्मितया तत्तवबोधविधायिन्या व्याख्यया विभूषितम् प्रथमोभागः, गुजरातपुरातत्त्व मन्दिर, अमदाबाद, संवत् १९८०, १/१ पृष्ठ १ 1
८. पट्टावली समुच्चय, संपा० मुनि दर्शन विजय, प्रथम भाग, पृष्ठ- १५० । ९. पंचवस्तुक, गाथा १०४८।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org