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________________ संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य ७६ में अयोध्या में नाभिराय और दशरथ, हस्तिनापुर में विश्वसेन, शौर्यपुर में में समुद्रविजय, वाराणसी में अश्वसेन, कुण्डपुर में सिद्धार्थ राजा का राज्य था। इन यशस्वी नरेशों को रानियों ने उज्ज्वल स्वप्न देखे थे । परिणामत: इनके द्वारा पुत्र प्राप्ति की प्राशा का साफल्य संभव प्रतीत होने लगा। द्वितीय सर्ग में गर्भवती रानियों ने यथासमय ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, वर्धमान, राम और श्रीकृष्ण को जन्म दिया। चतुनिकाय के देव अयोध्या, हस्तिनापुर, शौर्यपुर, वाराणसी और कुण्डपुर पहुंचे। प्रथम पांच महापुरुषों का इन्द्र ने सुमेरु पर जन्माभिषेक सम्पन्न किया। तृतीय सर्ग में तीर्थंकरों का नामकरण सम्पन्न होता है । सातों शिशु क्रमशः बड़े होते हैं । बाल क्रीड़ाएं करते हैं । उचित वय-प्राप्ति होने पर इनके विवाह भो हुए। चतुर्थ सर्ग में तीर्थंकरत्व के परिणामस्वरूप देश में समृद्धि बढ़ने लगी । ऋषभदेव को बाहुबली आदि पुत्र प्राप्त हुए । श्रीकृष्ण का संबंध पांडवों से होता है। कभी हस्तिनापुर में राजा शान्तनु राज्य करते थे। उनके भीष्म पितामह जैसे पराक्रमा पुत्र हुए। इसी वंश में कुरु और पांडु कुमार भी हुए । कुरु के पुत्र कौरव, पाण्डु के पुत्र पांडव हुए । बड़ ही कौशल और निपुणता के साथ श्लेष के प्रयोग द्वारा कवि ने एक-एक पद्य में एक साथ इन सात महापुरुषों के जीवन वृत्तान्त प्रस्तुत किए हैं। राम को वनवास होता है, भरत विरक्त होकर शासन कार्य का संचालन करते हैं । तीर्थंकरगण दीक्षा ग्रहण का उपक्रम करते हैं । पंचम सर्ग में दीक्षोप ांत तीर्थंकर विहार आरम्भ करते हैं। पाँचों तीर्थंकर तपः साधना में प्रवृत्त हो जाते हैं । राम, लक्ष्मण और सोता वन विहार करते हैं। रावण द्वारा सीता का हरण होता है। उधर श्रीकृष्ण की पांडवों के साथ सुदृढ़ मित्रता होती है । द्वारका को वे सभी भांति दृढ़तर बनाते हैं । शिशुपाल जरासन्ध के साथ द्वारका पर आक्रमणार्थ प्रस्थान करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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