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________________ ७८ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य वर्णन सम्मिलित हैं । यथा---ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, श्रीराम और श्रीकृष्ण । इनके चरित्र इस कृति में सात सर्गों में व्याप्त हैं। सप्तसंधान महाकाव्य के प्रणेता श्री मेघविजय उपाध्याय हैं। कवि मेघविजय साहित्य के अतिरिक्त व्याकरण, ज्योतिष, तर्कशास्त्र जैसे अन्यान्य विधाओं के भी निष्णात पण्डित थे । ये कृपाविजय जी के शिष्य थे और तपागच्छ के थे । प्रस्तुत महाकाव्य के अतिरिक्त देवानन्द महाकाव्य, हस्तसंजीवनं, वर्षप्रमोध युक्तिप्रबोध नाटक, चन्द्रप्रभा आदि कवि की प्रमुख रचनायें हैं । देवानन्द महाकाव्य की प्रशस्ति के उल्लेखानुसार यह रचना वि० ग० १७२७ (ई० सन् १६७०) को है ।61 इसमें कवि के काल के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है । सप्तसंधान को रचना १७६० (ई० सन् १७०३) में सम्पूर्ण हुई थी। यह कृति प्रकाशित है।63 कथानक का सार प्रथम सर्ग -गंगा और सिन्धु ये दो पावन सरिताएं भारत क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं। इस क्षेत्र के इतिहास में ख्यात जनपद - कोशल, कुरु, मध्य प्रदेश और मगध देश है। इन्हीं जनपदों में अयोध्या. हस्तिनापूर, शौर्यपुर, वैशालो, वाराणसी, मथुरा, कुण्डपुरी आदि प्रसिद्ध नगर हैं । अयोध्या में भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) और श्रीरामचंद्र का जन्म हुआ। हस्तिनापुर में भगवान शांतिनाथ ने, शौर्यपुर में भगवान नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) ने, वाराणसी में भगवान पार्श्वनाथ ने, वैशाली में भगवान महावीर ने और मथुरा में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया । इन महापुरुषों के नामों से जुड़कर ये नगर ही धन्य हो उठे हैं। अपने-अपने समयों ६१. मुनिनयनाश्वेन्दुमिते (१७२७ वि० सं०) वर्षे हर्षेण सादडीनगरे देवानन्द-प्राप्त प्रशस्ति ६२. बिंदुरसमुनीन्दूनां (१७६० वि० सं० ) प्रमाणात् परिवत्सरे कृतोयमुद्यम: __ सप्तसन्धानप्राप्तप्रशस्ति ६३. सप्तसन्धानकाव्य (वि० सं० २०००) श्री जैन साहित्यवर्धक सभा, गोपीपुरा, सूरत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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