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संस्कृत जैन कृष्ण माहित्य
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अलंकार-विधान
प्रकृति-चित्रण आदि के समान अलंकारों का प्रयोग भी कवि द्वारा किया गया है । कीतिराज ने अप्रस्तुतां को खोज में अपना जाल दूर-दूर तक फेंका है । जीवन के विविध पक्षों से उपमान ग्रहण किए हैं। प्रभुदर्शन से इन्द्र का क्रोध ऐसे शांत हो गया जैसे अमृत पान से ज्वर पीड़ा, वर्षा से दावाग्नि । अनेक मार्मिक उपमाएं भी दी गयी हैं। उत्प्रेक्षाओं का प्रयोग भी कुशलता के साथ किया गया है । संदेह, विरोधाभास, विषम, व्यतिरेक, विभावना, निदर्शना, सहोक्ति, विषम आदि अलंकार भी नेमिनाथ महाकाव्य में दर्शनीय हैं। छन्द-योजना
___ काव्य में अनेक छन्दों की योजना की गयी है । प्रथम, सप्तम, नवम सर्ग में अनुष्टुप् की प्रधानता है। कुछ श्लोक मालिनी, उपजाति, उपगीति व नन्दिनी में हैं । सर्गान्त में उपजाति व मन्दाक्रांता का उपयोग हुआ है । सब मिलाकर काव्य में २५ छन्द प्रयुक्त हुए हैं । नेमिनाथ महाकाव्य की रचना कविवर कालिदास की परम्परा में हुई है । एक धार्मिक कथानक चुनकर भी कीर्तिराज ने अपनी कवित्व-शक्ति एवं संतुलित दृष्टिकोण के कारण साहित्य को एक ऐसा रोचक महाकाव्य प्रदान किया है जिसे संस्कृत जगत युगों-युगों तक स्मरण रखे बिना नहीं रह सकता।
प्रस्तुत महाकाव्य हिन्दी अनुवाद सहित नाहटा ब्रदर्स, ४-जगमोहन मलिक लेन कलकत्ता से प्रकाशित है। नेमिसंदेश काव्य : १७वीं सदी की रचना
लेखक-हर्षप्रमोद प्रद्य म्नलीलाप्रकाश : १८६६ _(चम्पूकाव्य)
लेखक-शिवचन्द्रोपाध्याय उपरोक्त काव्य उपलब्ध न होने के कारण यहाँ पर संकेत मात्र उल्लेख किया गया है।
(4) सप्तसन्धानकाव्य (अनेकार्थ काव्य) कृति और कृतिकार
'सप्तसन्धानमहाकाव्यम् में समानांतर रूप में सात महापुरुषों के
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