SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत जैन कृष्ण माहित्य ७७ अलंकार-विधान प्रकृति-चित्रण आदि के समान अलंकारों का प्रयोग भी कवि द्वारा किया गया है । कीतिराज ने अप्रस्तुतां को खोज में अपना जाल दूर-दूर तक फेंका है । जीवन के विविध पक्षों से उपमान ग्रहण किए हैं। प्रभुदर्शन से इन्द्र का क्रोध ऐसे शांत हो गया जैसे अमृत पान से ज्वर पीड़ा, वर्षा से दावाग्नि । अनेक मार्मिक उपमाएं भी दी गयी हैं। उत्प्रेक्षाओं का प्रयोग भी कुशलता के साथ किया गया है । संदेह, विरोधाभास, विषम, व्यतिरेक, विभावना, निदर्शना, सहोक्ति, विषम आदि अलंकार भी नेमिनाथ महाकाव्य में दर्शनीय हैं। छन्द-योजना ___ काव्य में अनेक छन्दों की योजना की गयी है । प्रथम, सप्तम, नवम सर्ग में अनुष्टुप् की प्रधानता है। कुछ श्लोक मालिनी, उपजाति, उपगीति व नन्दिनी में हैं । सर्गान्त में उपजाति व मन्दाक्रांता का उपयोग हुआ है । सब मिलाकर काव्य में २५ छन्द प्रयुक्त हुए हैं । नेमिनाथ महाकाव्य की रचना कविवर कालिदास की परम्परा में हुई है । एक धार्मिक कथानक चुनकर भी कीर्तिराज ने अपनी कवित्व-शक्ति एवं संतुलित दृष्टिकोण के कारण साहित्य को एक ऐसा रोचक महाकाव्य प्रदान किया है जिसे संस्कृत जगत युगों-युगों तक स्मरण रखे बिना नहीं रह सकता। प्रस्तुत महाकाव्य हिन्दी अनुवाद सहित नाहटा ब्रदर्स, ४-जगमोहन मलिक लेन कलकत्ता से प्रकाशित है। नेमिसंदेश काव्य : १७वीं सदी की रचना लेखक-हर्षप्रमोद प्रद्य म्नलीलाप्रकाश : १८६६ _(चम्पूकाव्य) लेखक-शिवचन्द्रोपाध्याय उपरोक्त काव्य उपलब्ध न होने के कारण यहाँ पर संकेत मात्र उल्लेख किया गया है। (4) सप्तसन्धानकाव्य (अनेकार्थ काव्य) कृति और कृतिकार 'सप्तसन्धानमहाकाव्यम् में समानांतर रूप में सात महापुरुषों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy