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________________ ७४ जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य मौलिकता का परिचय दिया है । उद्दीपन व आलम्बन पक्ष का सरस वर्णन किया है । शरद् ऋतु का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है शरददभ्रजला कलगजिता स चपला चपलानिलनोदिता । दिवि चचाल नवाम्बुदमण्डली, गजघटेव मनोभवभूपते ॥ प्रकृति के विविध रूपों का वर्णन कवि ने किया है। सौन्दर्य-चित्रण काव्य में कतिपय पात्रों के कायिक सौन्दर्य का हृदयहारी चित्रण किया गया गया है । नख-शिख वर्णन, नवीन-नवोन उपमानों को योजना से काव्य कला में प्रशंसनीय भाव-प्रेषणीयता आई है। देवांगनाओं की जघनस्थली की तुलना कामदेव की आसनगद्दी से करते हुए लिखा है वृत्तादुकलेन सुकोमलेन विलग्नकांचीगुणजात्यरचना ।। विभाति यासां जघनस्थली सा मनोभवस्यासनगब्दिकेव ।। इसी प्रकार राजीमती क जङ्घाओं को कदलो स्तम्भ व कामगज के आलान के रूप में चित्रित किया गया है। रसयोजना . मनोरागों का चित्रण करने में कीर्तिराज कुशल कवि हैं । साधारण सा प्रसंग भी तीव्र रसानुभूति कराता है। इसमें शृंगाररस, अंगीरस के रूप में है । करुण, रौद्र आदि का भी यथोचित प्रयोग किया गया है । ऋतु. वर्णन द्वारा शृंगार के अनेक रमणीय चित्र अङ्कित किए हैं उपवने पवनेरितपादपे, नवतरं बत रंतुमनाः परा । सकरुणा करुणावच्ये प्रियं, प्रियतमा यतमानमवारयत् ।। उपवन के मादक वातावरण से कामाकुल नायिका नये छैल पर रीझ गयी हो तो इसमें आश्चर्य क्या ? चरित्र-चित्रण काव्य के संक्षिप्त कथानक में पात्र संख्या भी सीमित है। कथानायक नेमिनाथ के अलावा उनके पिता समुद्रविजय, माता शिवादेवा, राजीमती, उग्रसेन, प्रतीकात्मक सम्राट मोह तथा संयम और दूत कैतव एवं मन्त्री विवेक ही काव्य के पात्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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